________________ . - RecemRRRRR नियूक्ति-गाथा-470 030002020 (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) तत्र बरकाः इति नारकालयाः, तेच सप्तपृथिव्याधारत्वेन सप्तघा भिद्यन्ते। . तत्र रत्नप्रभाद्याधारनरकेषु यथासंख्यमुत्कृष्ठेतरभेदभिन्नावधेः क्षेत्रपरिमाणमिदम् / 'नस्केषु' " & इति सामर्थ्यात् तन्निवासिनो नारकाः परिगृह्यन्ते। तत्र रत्नप्रभाधारबरके उत्कृष्टावधिक्षेत्रं , चत्वारि गव्यूतानि, जघन्यावधेरर्धचतुर्थानि, अर्ध चतुर्थस्य येषु तान्यर्धचतुर्थानि / एवं , शर्कराप्रभाधारनरके परमावधिक्षेत्रमानम् अर्धचतुर्थानि / इतरावधिक्षेत्रमानं तु त्रिगव्यूतम, . त्रीणि गव्यूतानि त्रिगव्यूतम्, एवं सर्वत्र योज्यं यावन्महातमःप्रभाधारनरके उत्कृष्टावधिक्षेत्रं गव्यूतम्, जघन्यावधिक्षेत्रं चार्धगव्यूतमिति।रत्नप्रभाधारनरक इत्यादौ जात्यपेक्षमेकवचनम्, : अनिर्दिष्टस्यापि नवरं पदार्थगमनिका। (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) नरक यानी नारकियों के निवास स्थान, वे सात पृथ्वियों के आधार के कारण सात भेदों में विभक्त हैं। इनमें रत्नप्रभा आदि पृथ्वियों में स्थित नरकों में - क्रमशः अवधिज्ञान के उत्कृष्ट व जघन्य क्षेत्र-परिमाण इस प्रकार हैं। नरकों में- यहां , & प्रकरण-सामर्थ्य से नरक पद का अर्थ यहां ग्राह्य होगा- 'नरकवासी' यानी नारकी जीव। . (इनमें प्रथम पृथ्वी) रत्नप्रभा में स्थित नरक में (नारकियों का) उत्कृष्ट अवधि-क्षेत्र चार गव्यूत है और जघन्य अवधि-क्षेत्र अर्घचतुर्थ गव्यूत है। चौथे का आधा ही भाग हो जिसमें, वह 'अर्धचतुर्थ' (यानी साढ़े तीन) होता है। शर्कराप्रभा में स्थित नरक में अवधिज्ञान का उत्कृष्ट क्षेत्र अर्धचतुर्थ (साढ़े तीन) गव्यूत है और जघन्य क्षेत्र तो तीन गच्यूत है। इसी प्रकार a (आधा-आधा) गच्यूत कम करते हुए, और ऊपर की पृथ्वी के जघन्य क्षेत्र-मान को आगे की . * पृथ्वी में उत्कृष्ट क्षेत्र मान बनाते हुए आगे भी) सर्वत्र क्षेत्रमान की आयोजना करते जाएं तो सातवीं पृथ्वी महातमःप्रभा में स्थित नरक तक उत्कृष्ट अवधि-क्षेत्र एक गव्यूत होगा और 4 जघन्य-क्षेत्र आधा गव्यूत। रत्नप्रभा में स्थित नरकों आदि में जाति-अपेक्षा से एकवचन है। (वस्तुतः प्रथम पृथ्वी में कई लाख नरक होते हैं, आगे की पृथ्वियों में भी अनेक नरक हैं, " ca अतः सभी को एकरूपता की दृष्टि से एकवचन द्वारा अभिहित किया गया है।) पदार्थबोध में ca तो जो निर्दिष्ट नहीं होता, उसका भी बोध समाहित होता है। -333333333333333333333333333333333333333333333 -333333333333333333333333333333333333333333388 (r)(r)(r)(r)(r)R@necR9088090090@RO900 227