________________ - / -acacacacacaca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000000 विशेषार्थ यहां नारकों के अवधिज्ञान का जघन्य क्षेत्र 'गव्यूत' (गाऊ) बताया गया है। किन्तु प्रज्ञापना (पद- .. ca 33) का तथा आगे वाली गाथा की व्याख्या का अनुशीलन करें तो यहां 'गव्यूत' का अर्थ 'अर्द्धगव्यूत' ही ग्राह्य " ca है-ऐसा उचित प्रतीत होता है। 'गव्यूत' का व्यावहारिक मान क्या है? संस्कृत कोषकार 'गव्यूत' (या गव्यूत) को एक कोस (या " कहीं-कहीं दो कोस) के बराबर, या दो हजार धनुष प्रमाण मानते हैं। समवायांग में गव्यूत को एक चौथाई " c& योजन प्रमाण वाला माना गया है, वही सर्वत्र ग्राह्य है- ऐसा मानना चाहिए। 6 . 23333333333333333333333222222 22222222222222 (हरिभद्रीय वृत्तिः) ___ एवं नारकजातिमधिकृत्य जघन्येतरभेदोऽवधिः प्रतिपादितः। साम्प्रतं , रत्नप्रभादिपृथिव्यपेक्षया उत्कृष्टेतरभेदमभिधित्सुराह (नियुक्तिः) चत्तारि गाउयाई, अद्भुट्ठाई तिगाउयं चेव। अड्डाइज्जा दुण्णि य, दिवट्टमेगं च निरएसु // 47 // [संस्कृतच्छायाः-चत्वारि गव्यूतानि, सार्वत्रीणि त्रिगव्यूतं चैव ।अर्घतृतीयानि, द्वेच, अद्ध्यर्धमेकं च a बरकेषु / / (वृत्ति-हिन्दी-) इस प्रकार, नारक जन्म को आधार मान कर, वहां के जघन्य व उत्कृष्ट अवधिज्ञान का प्रतिपादन किया गया। अब रत्नप्रभा आदि (नरक की सात) पृथिवियों - 4 की अपेक्षा से (अवधि के) उत्कृष्ट व जघन्य भेद का कथन करने जा रहे हैं 666666 (47) (नियुक्ति-अर्थ-) नरकावासों में (सातों पृथिवियों में अवधि के क्रमशः) जघन्य व 4 उत्कृष्ट क्षेत्र इस प्रकार हैं- (1) चार गव्यूत व साढ़े तीन गव्यूत। (2) साढ़े तीन गव्यूत व तीन गव्यूत। (3) तीन गव्यूत व ढाई गव्यूत / (4) ढाई गव्यूत व दो गव्यूत / (5) दो गव्यूत व डेढ़ गव्यूत (6) डेढ़ गव्यूत व एक गव्यूत, (7) एक गव्यूत व अर्घ गव्यूत। &&&&&&&&& 1226 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)RO900