________________ 22222233333333222222223 -caca ca cacacace caca नियुक्ति गाथा-42-43 0 900200099समझना चाहिए, अर्थात् जिनकी गिनती नहीं की जा सके, ऐसे (असंख्यात) द्वीप व समुद्र & प्रमेय होते हैं और काल भी असंख्येय होता है, अर्थात् पल्योपम के असंख्यात भाग का , समुदित रूप प्रमाण काल 'प्रमेय' होता है (यहां तक ग्रन्थ का परिमाण हुआ-1000)। यहां / यद्यपि द्वीप-समुद्र को असंख्यात बताया गया है, फिर भी प्रमेय भूत द्रव्य (तैजस व भाषा) की स्थूलता व सूक्ष्मता के अनुरूप द्वीप-समुद्र की अल्पता-बहुलता समझ लेनी चाहिए। (हरिभद्रीय वृत्तिः) आह- एवं सति 'तेयाभासादवाण अन्तरा एत्थ लहइ पट्ठवओ' (गाथा-३८) , इत्याधुक्तम्, तस्य च तैजसभाषान्तरालद्रव्यदर्शिनोऽप्यङ्गुलावलिकाऽसंख्येयभागादि / क्षेत्रकालप्रमाणमुक्तं तद्विरुध्यते, तैजसभाषाद्रव्ययोरसंख्येयक्षेत्रकालाभिधानात्, न। प्रारम्भकस्योभयायोग्यद्रव्यग्रहणात्, द्रव्याणां च विचित्रपरिणामत्वाद् यथोक्तं ल क्षेत्रकालप्रमाणमविरुद्धमेव / अल्पद्रव्याणि वाऽधिकृत्य तदुक्तम्, प्रचुरतैजसभाषाद्रव्याणि " ca पुनरङ्गीकृत्येदम्।अलं विस्तरेणेति गाथार्थः // 43 // (वृत्ति-हिन्दी-) (शंका-) यदि ऐसी बात है तो (गाथा-38 में) आपने कहा था कि c'तैजस व भाषा द्रव्यों के अन्तराल में स्थित द्रव्यों को अवधि ज्ञान का प्रस्थापक ग्रहण करता है है'। वहां तैजस व भाषा द्रव्य के अन्तराल को देखने वाले अवधि ज्ञान के लिए अंगुल व & आवलिका के असंख्यात भाग आदि क्षेत्र-काल प्रमाण विषय आपने बताया- उससे यह , (प्रस्तुत) कथन विरुद्ध हो जाता है, क्योंकि तैजस व भाषा द्रव्य के ज्ञाता अवधि ज्ञान को / आप यहां असंख्यात क्षेत्र व काल को विषय करने वाला बता रहे हैं। उत्तर- ऐसी बात : 4 (परस्पर विरुद्ध कथन) नहीं है। प्रारम्भक अवधिज्ञानी के लिए वहां यह कहा गया है कि वह दोनों (तैजस व भाषा) के अयोग्य द्रव्य को ग्रहण करता है। (अर्थात् वह जितना ग्रहण , कर पाता है, उसी का निरूपण है।) उन (जैसे अयोग्य) द्रव्यों की परिणतियां भी विचित्र 1 होती हैं। इसलिए क्षेत्र व काल का पूर्वोक्त कथन विरोधी नहीं है। अथवा पहले जो कहा गया, . वह अल्प द्रव्यों को दृष्टि में रख कर कहा गया, किन्तु यहां जो कथन किया गया है, वह , प्रचुर तैजस व भाषा द्रव्यों को दृष्टि में रखकर किया गया है। अब अधिक कहने की अपेक्षा, नहीं रह जाती। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ 43 // (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 217