________________ 232222222333333333333333333333333333333333333 caca cacaacaca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000000. क्षेत्र व काल को ही लेकर यहां निरूपण करना तो निरर्थक (निष्प्रयोजन) है? उत्तरca आपका कहना सही नहीं है, क्योंकि यहां भी (द्रव्य का भले ही साक्षात् निरूपण न हो, तो , भी) सामर्थ्य से द्रव्य के उपनिबन्धन (द्रव्यगत मर्यादा) का निरूपण हो ही जाता है, इसीलिए: कर्म द्रव्य के बाद अवधिज्ञान के लिए (उक्त अनुपात से) क्षेत्र व काल की वृद्धि का अनुमान : ce कर लेना चाहिए। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ |42 / / (हरिभद्रीय वृत्तिः) (द्वितीयगाथाव्याख्या-) तेजोमयं तैजसम्, शरीरशब्दः प्रत्येकमभिसंबध्यते। . तैजसशरीरे तैजसशरीरविषयेऽवधौ क्षेत्रतोऽसंख्येया द्वीपसमुद्राः प्रमेयत्वेन बोद्धव्या इति।। कालश्च असंख्येय एव। मिथ्यादर्शनादिभिः क्रियत इति कर्म-ज्ञानावरणीयादि, तेन निर्वृत्तं / तन्मयं वा कार्मणम्, शीर्यते इति शरीरम्, कार्मणं च तच्छरीरं चेति विग्रहः, तस्मिन्नपि तैजसवद्वक्तव्यम् / एवं तैजसद्रव्यविषये चावधौ भाषाद्रव्यविषये च क्षेत्रतो 'बोद्धव्या' विज्ञेयाः। संख्यायन्त इति संख्येयाः, न संख्येया असंख्येयाः, द्वीपाश्च समुद्राश्च द्वीपसमुद्राः, प्रमेयत्वेनेति। . & कालश्चासंख्येय एव, स च पल्योपमासंख्येयभागसमुदायमानो विज्ञेय इति, (ग्रव्याग्रम् 1000) / . अत्र चासंख्येयत्वे सत्यपि यथायोगं द्वीपाद्यल्पबहुत्वं सूक्ष्मेतरद्रव्यद्वारेण विज्ञेयमिति। (वृत्ति-हिन्दी-) दूसरी गाथा (तियालीसवीं) की व्याख्या इस प्रकार है- तेजोमय। . तैजसकर्मशरीर' इस पद में प्रयुक्त 'तेजस' का अर्थ है- तेजोमय। 'शरीर' का सम्बन्ध , 4 तैजस व कर्म -इन दोनों से है। अतः अर्थ होगा- तैजस शरीर और कर्म-शरीर (कार्मण: शरीर), यदि ये अवधि ज्ञान के विषय होते हैं तो क्षेत्र की दृष्टि से असंख्येय द्वीप-समुद्र प्रमेय, होते हैं- यह जानना चाहिए। काल को भी असंख्यात ही जानना चाहिए (अर्थात् काल की : * दृष्टि से पल्योपम का असंख्यात भाग प्रमेय होता है)। 'कर्मशरीर' शब्द में कर्म का अर्थ है जो मिथ्यादर्शन आदि द्वारा किया जाय, वह ज्ञानावरणीयादि कर्म / उस कर्म से बना हुआ या . तन्मय, उसे कार्मण कहा जाता है। शरीर का अर्थ है- जो शीर्ण हो, क्षय को प्राप्त हो / कार्मण . & जो शरीर -यह विग्रह (अर्थ) है (तदनुसार कर्मधारय समास होकर 'कर्मशरीर' यह समस्त पद निष्पन्न हुआ है)। यह जब अवधिज्ञान का विषय हो तो (क्षेत्र व काल की दृष्टि से , * प्रमेय क्या होगा -इसका निरूपण पूर्वोक्त) तैजस शरीर की तरह समझना चाहिए। इसी , , तरह, तैजस द्रव्य व भाषा द्रव्य जब अवधि के विषय हों तो क्षेत्र की दृष्टि से प्रमेय को - 216 8 9@@@ca@@@Rece@9828898