________________ - -cacacacacaca cacece नियुक्ति-गाथा-42-43 000000000 22222223 333333333 3333333333333333 एतदुक्तं भवति-अवधिज्ञानी मनोद्रव्यं पश्यन् क्षेत्रतो लोकस्य संख्येयभागं कालतश्च ca पल्योपमस्य जानीते इति। तथा संख्येया लोकपल्योपमभागाः 'कर्मद्रव्ये' इति , & कर्मद्रव्यपरिच्छेदकेऽवधौ प्रमेयत्वेन बोद्धव्या इति वर्तते ।अयं भावार्थः-कर्मद्रव्यं पश्यन् / लोकपल्योपमयोः पृथक् पृथक् संख्येयान् भागान् जानीते। लोके' इति चतुर्दशरज्ज्वात्मकलोकविषयेऽवधौ, क्षेत्रतः कालतः स्तोकन्यूनं पल्योपमं प्रमेयत्वेन बोद्धव्यम् इति वर्तते। (वृत्ति-हिन्दी-) प्रथम गाथा (42वीं) की व्याख्या इस प्रकार है-संख्येय का अर्थ है C जिसकी गिनती की जा सके। मनोद्रव्य से तात्पर्य है- मन से सम्बन्धित या मन के योग्य , द्रव्य, वह जब अवधिज्ञान का विषय हो, अर्थात् अवधिज्ञान जब मनोद्रव्य को जाने तो क्षेत्र 1 a की दृष्टि से लोक का संख्येय भाग, काल की दृष्टि से भी 'पलिय' यानी 'पल्योपम' का , व संख्येय भाग 'प्रमेय' (जानने योग्य) के रूप में समझना चाहिए। तात्पर्य यह है कि अवधिज्ञानी मनोद्रव्य को जानता हुआ, क्षेत्र की दृष्टि से लोक के व संख्यात भाग को तथा काल की दृष्टि से पल्योपम के संख्यात भाग को जानता है, अर्थात् " कर्मद्रव्य को जानने वाले अवधिज्ञान के लिए लोक का संख्येय भाग तथा पल्योपम काल का , संख्यात भाग 'प्रमेय' होता है- ऐसा समझें। भावार्थ यह है कि कर्मद्रव्य को देखता हुआ : अवधिज्ञान लोक के तथा पल्योपम के पृथक्-पृथक् संख्येय भागों को जानता है। यहां / 'लोके' से तात्पर्य है- क्षेत्र की दृष्टि से चौदह राजू प्रमाण लोक को विषय करने वाले अवधिज्ञान के होने पर, काल की दृष्टि से कुछ कम ‘पल्योपम' काल को उसके प्रमेय रूप 4. में जानना चाहिए। (हरिभद्रीय वृत्तिः) इदमत्र हृदयम्-समस्तं लोकं पश्यन् क्षेत्रतः कालतः देशोनं पल्योपमं पश्यति। 4 द्रव्योपनिबन्धनक्षेत्रकालाधिकारे प्रक्रान्ते केवलयोर्लोकपल्योपमक्षेत्रकालयोहणम् अनर्थकमिति 5 चेत्, नाइहापि सामर्थ्यप्रापितत्वाद् द्रव्योपनिबन्धनस्य, अत एव च तदुपर्याप धुववर्गणादि द्रव्यं पश्यतः क्षेत्रकालवृद्धिरनुमेयेति गाथार्थः // 42 // ca (वृत्ति-हिन्दी-) सारांश यह है कि क्षेत्र की अपेक्षा से समस्त लोक को देखता हुआ है काल की दृष्टि से कुछ कम पल्योपम को देखता है। (शंका-) द्रव्य के साथ क्षेत्र व काल का निरूपण करने आप जा रहे थे, किन्तु आप के द्वारा मात्र लोक व पल्योपम को, अर्थात् मात्र - (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 215