________________ cancecace caca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 99000000 3333333 333333333333333333333322232323223 2222222 | होना / इसी तरह मनोद्रव्य वर्गणाओं के भी (ग्रहण-) अयोग्य, योग्य, अयोग्य -इस प्रकार & तीन-तीन वर्ग नियोजित करने चाहिएं। इसी रीति से सर्वत्र भावना (दृष्टि) रखनी चाहिए। . & इस विषय में 'परं परं सूक्ष्मम्', 'प्रदेशतोऽसंख्येयगुणाः' (अर्थात शरीरों में उत्तरोत्तर सूक्ष्म , % होते हैं, और वे प्रदेश की दृष्टि से असंख्यात गुणे भी हैं) -ये (तत्त्वार्थसूत्र के द्वितीय अध्याय, में 38-39 वें सूत्र रूप में) शास्त्रीय वचन प्राप्त होते हैं। इस प्रकार, काल व भाव की दृष्टि से वर्गणाओं का नमूने के तौर पर निरूपण कर ही दिया गया है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण ब हुआ॥ 39 // (हरिभद्रीय वृत्तिः) . द्वितीयगाथाव्याख्या-तत्रानन्तरगाथायां कर्मद्रव्यवर्गणाः प्रतिपादिताः।साम्प्रतं. : प्रदेशोत्तरवृद्धया तदग्रहणप्रायोग्याः प्रदर्श्यन्ते-क्रियत इति कर्म, कर्मण उपरि कर्मोपरि। धुवेति-धुववर्गणा अनन्ता भवन्ति, धुववर्गणा इति धुवा नित्याः सर्वकालावस्थायिन्य इति भावार्थः। इतरा' इति प्रदेशवृद्धया ततोऽनन्ता एवाधुववर्गणा अनन्ता भवन्ति। अधुवा' इति // & अशाश्वत्यः, कदाचिन्न सन्त्यपीत्यर्थः।ततः 'शून्या' इति सूचनात्सूत्रमितिकृत्वा शून्यान्तरवर्गणाः . परिगृह्यन्ते, शून्यान्यन्तराणि यासां ताः शून्यान्तराः शून्यान्तराश्च ता वर्गणाश्चेति समासः। (वृत्ति-हिन्दी-) द्वितीय (40वीं) गाथा की व्याख्या इस प्रकार है- पिछली गाथा में , & कर्म-द्रव्यवर्गणा का प्रतिपादन किया गया है। अब, (एक-एक) प्रदेश की उत्तरोत्तर वृद्धि , करते हुए, उसके ग्रहण-अयोग्य वर्गणाओं का निदर्शन किया जा रहा है- कर्म वह है जो किया जाता है, उस 'कर्म' के ऊपर में (उक्त कार्मण वर्गणाओं के बाद कुछ अन्य वर्गणाएं भी हैं जो ग्रहण-अयोग्य हैं)। (ध्रुवेतर...) अनन्त ध्रुव वर्गणाएं होती हैं। ध्रुव यानी नित्य, सर्व ca कालों में जो स्थायी रहती हैं, वे ध्रुव वर्गणाएं होती हैं- यह तात्पर्य है। इसके साथ ही, प्रदेशव वृद्धि के साथ, उस (ध्रुव वर्गणा) से भी अनन्तगुनी अध्रुव वर्गणाएं भी अनन्त होती हैं। " a 'अध्रुव' यानी अशाश्वत, अर्थात् कभी नहीं भी रहतीं। इसके आगे 'शून्य' वर्गणाएं हैं। चूंकि 1 यहां सूत्रात्मक यानी निर्देशमात्र कथन है, इसलिए 'शून्य' से- 'शून्यान्तर वर्गणा' अर्थ ग्राह्य है। जिनमें अन्तर शून्य हों वे 'शून्यान्तर' होती हैं (अतः 'शून्यान्तर' इस पद में बहुव्रीहि . समास है), ऐसी वर्गणाएं -इस अर्थ में (इस प्रकार कर्मधारय समास हो कर तीन पदों : वाला) समास-युक्त पद है- शून्यान्तर वर्गणा। &&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&& 208 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)99