________________ - Recenamance 9999999999999999 - 22.3333333333333333333333333333333333333330 नियुक्ति-गाथा-39-40 (हरिभद्रीय वृत्तिः) आहकथं पुनरिदं एकैकस्यौदारिकादेस्त्रयं त्रयं गम्यत इति। उच्यते, : तैजसभाषाद्रव्यान्तर-वर्युभयायोग्यद्रव्यावधिगोचराभिधानात्। 'अथ' अयं द्रव्यवर्गणानां क्रमः, तत्र वर्गणा वर्गो राशिरिति पर्यायाः।तथा विपर्यासतः', . विपर्यासेन 'क्षेत्रे' इति क्षेत्रविषयो वर्गणाक्रमो वेदितव्यः। एतदुक्तं भवति-एकप्रदेशावगाहिनां / परमाणूनां स्कन्धानां चैका वर्गणा, तथा द्विप्रदेशावगाहिनां स्कन्धानामेव द्वितीया वर्गणा, . एवमेकैकप्रदेशवृद्धया संख्येयप्रदेशावगाहिनां संख्येयाः, असंख्येयप्रदेशावगाहिनां चासंख्येयाः, ca ताश्च प्रदेशप्रदेशोत्तराः खल्वसंख्येया विलंध्य कर्मणो योग्यानामसंख्येया वर्गणा भवन्ति, पुनः ca प्रदेशवृद्धया तस्यैवायोग्यानाम् असंख्येया इति। अयोग्यत्वं चाल्पपरमाणुनिवृत्तत्वात् प्रभूतप्रदेशावगाहित्वाच्च / मनोद्रव्यादीनामप्येवमेवायोग्ययोग्यायोग्यलक्षणं त्रयं त्रयमायोजनीयमिति।एवं सर्वत्र भावना कार्या। परं परं सूक्ष्मम्', 'प्रदेशतोऽसंख्येयगुणम्' (प्राक्तैजसात्) इति (तत्त्वार्थे अ० 2 सूत्रे 38-39) वचनात् / कालतो भावतश्च वर्गणा दिग्मात्रतो दर्शिता एवेति गाथार्थः // 39 // ___ (वृत्ति-हिन्दी-) (शंका-) औदारिक आदि में प्रत्येक का तीन-तीन प्रकार किस , आधार पर गम्य (ज्ञात) होते हैं? समाधान इस प्रकार है- तैजस व भाषा द्रव्यों के मध्यवर्ती उभय द्रव्यों के अयोग्य द्रव्य तक को अवधिज्ञान द्वारा ज्ञात किये जाने का जो कथन किया है गया है, उसी के आधार पर (ये गम्य होते हैं)। . द्रव्य-वर्गणाओं का यह (उपर्युक्त) क्रम है। यहां (यह ज्ञातव्य है कि) वर्गणा, वर्ग व राशि -ये परस्पर-पर्याय हैं। क्षेत्र विषयक उक्त द्रव्य-वर्गणा का क्रम-विपर्यास (विपरीतता) a लिए हुए होता है- ऐसा जानना चाहिए। तात्पर्य यह है एक प्रदेश में अवगाढ़ परमाणुओं व " व स्कन्धों की एक वर्गणा हुई, इसी तरह एक-एक प्रदेश की वृद्धि करते हुए संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ स्कन्धों की संख्यात वर्गणाएं, असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ स्कन्धों की असंख्यात & वर्गणाएं, एक-एक प्रदेश की वृद्धि से युक्त होती हुई इन असंख्यात वर्गणाओं को लांघकर, (इनसे परे) 'कर्म' के (ग्रहण-) योग्य असंख्यात वर्गणाएं होती हैं, फिर प्रदेश-वृद्धि से बढ़ती है हुई कर्म के (ग्रहण-) अयोग्य द्रव्यों की असंख्यात वर्गणाएं विद्यमान होती हैं। (ग्रहण-) अयोग्यता का कारण है- उनका अल्पपरमाणु से निर्मित होना और प्रचुर प्रदेशों में अवगाहित 77777777777777777773333333333338888888888888 @90cR90@ @@ @98889080@cR900. 207