________________ 2233 33333333333333333333333333333333333333 scecaca caca caca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 20 20 20 20 909097 भी उस काल की तुलना में (भी) क्षेत्र अधिक सूक्ष्म होता है। कैसे? चूंकि मात्र अंगुलि-श्रेणी 4 के क्षेत्र में ही प्रत्येक प्रदेश के आधार पर समय की गणना करें तो असंख्येय अवसर्पिणी " काल हो जाता है -ऐसा तीर्थंकरों ने बताया है। तात्पर्य यह है कि अंगुल-श्रेणी मात्र क्षेत्र में , प्रदेश के अग्रभाग- आकाशप्रदेश का ही परिमाण असंख्यात अवसर्पिणी काल की समयराशि जितना होता है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ ||37 // (हरिभद्रीय वृत्तिः) उक्तमवधेर्जघन्यादिभेदभिन्न क्षेत्रपरिमाणम्।क्षेत्रं चावधिगोचरद्रव्याधारद्वारेणैवावधेरिति / 1 व्यपदिश्यते, अतः क्षेत्रस्य द्रव्यावधिकत्वात् तदभिधानानन्तरमेव अवधिपरिच्छेदयोग्यद्रव्याभिघित्सयाऽऽह (नियुक्तिः) तेआभासादव्वाण, अन्तरा इत्थ लहइ पट्ठवओ। गुरुलहुअ-अगुरुलहुअं, तंपि अतेणेव निट्ठाइ // 38 // [संस्कृतच्छायाः-तैजस-भाषाद्रव्याणाम् अन्तरा अत्र लभते प्रस्थापकः।गुरुलघु अगुरुलघुकं तदपि से च तेनैव नितिष्ठति। (वृत्ति-हिन्दी-) अवधिज्ञान के जघन्य आदि भेदों के अनुरूप क्षेत्र-परिमाण का निरुपण कर दिया गया। अवधिज्ञान के विषय होने वाले द्रव्य के आधार पर ही अवधि का क्षेत्र बताया जाता है। चूंकि क्षेत्र द्रव्य-मर्यादित होता है, इसलिए द्रव्य-मर्यादा के निरूपण के बाद ही अवधिज्ञान से जाने जा सकने योग्य द्रव्य का कथन उचित है- इस दृष्टि से a (शास्त्रकार आगे) कह रहे हैं 333333333333333333333333333388888888888888888 / (38) (नियुक्ति-अर्थ-) प्रस्थापक (प्राथमिक स्थिति वाला, प्रतिपाती ज्ञान वाला) अवधिज्ञानी तैजस वर्गणा व भाषा वर्गणा के मध्यवर्ती गुरुलघु व अगुरुलघु पर्याय वाले (द्रव्यों) को ग्रहण , न करता है। बस, उसे ग्रहण करते-करते ही प्रतिपतित (समाप्त) हो जाता है। 200 (r)(r)(r)(r)ce(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) -