________________ RRRRRRRece 209020200090 नियुक्ति गाथा-37 कियता भागेन हीनाधिकत्वमिति।अत्रोच्यते, सर्वत्र प्रतियोगिनः खल्वावलिकाऽसंख्येयभागादेः ca कालाद् असंख्येयगुणं क्षेत्रम्।कुत एतत्? अत आह नियुक्तिः) सुहमो य होइ कालो, तत्तो सुहुमयरं हवइ खित्तं। अङ्गलसेढीमित्ते, ओसप्पिणीओ असंखेज्जा // 37 // [संस्कृतच्छायाः- सूक्ष्मश्च भवति कालः, ततः सूक्ष्मतरं भवति क्षेत्रम् / अङ्गुलश्रेणिमात्रे ca अवसर्पिण्योऽसंख्येयाः।] (वृत्ति-हिन्दी-) किसी शंकाकार ने कहा- अवधिज्ञान से सम्बद्ध, एवं जघन्य, : मध्यम व उत्कृष्ट -इन भेदों वाले तथा अंगुल व आवलिका के असंख्यात भाग के रूप में , निर्दिष्ट क्षेत्र व काल की (भी तो) परस्पर प्रदेश-संख्या व समय-संख्या के आधार पर अपेक्षाकृत स्थूलता व सूक्ष्मता होती है, (क्षेत्र की अपेक्षा काल की स्थूलता है), ऐसी स्थिति में यह भी बताएं कि कितने अंशों में हीनता है या अधिकता है? इसका उत्तर यह हैca आवलिका के असंख्येय भाग आदि प्रतियोगी (विधेय, ज्ञेय) काल की तुलना में क्षेत्र सर्वत्र ca असंख्येय गुना (स्थूल) होता है। ऐसा कैसे? इसका उत्तर दे रहे हैं (37) (नियुक्ति-अर्थ-) काल सूक्ष्म होता है, (किन्तु) उससे भी अधिक सूक्ष्म क्षेत्र होता है। " a (क्योंकि) अंगुलश्रेणी मात्र आकाशप्रदेश का परिमाण असंख्यात अवसर्पिणी की समय-राशि के समान होता है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) 'सूक्ष्मः' श्लक्ष्णश्च, भवति कालः, यस्माद् उत्पलपत्रशतभेदे समयाः * प्रतिपत्रमसंख्येयाः प्रतिपादिताः, तथापि ततः' कालात्, सूक्ष्मतरं भवति क्षेत्रम्।कुतः?, यस्मात् " * अङ्गुलश्रेणिमात्रे क्षेत्रे प्रदेशपरिमाणं प्रतिप्रदेशं समयगणनया अवसर्पिण्यः असंख्येयाः, तीर्थकृद्भिः / प्रतिपादिताः। एतदुक्तं भवति- अङ्गुलश्रेणिमात्रे क्षेत्रे प्रदेशाग्रम् असंख्येयावसर्पिणीसमयराशिपरिमाणमिति गाथार्थः॥३७॥ . (वृत्ति-हिन्दी-) काल सूक्ष्म व श्लक्ष्ण (अल्प, बारीक) होता है, क्योंकि सौ कमल के / पत्रों के भेदने में प्रत्येक पत्र के भिन्न होने का काल असंख्येय समय बताया गया है, फिर | - (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)ce(r)(r) 199 - - 232223333333333333333333333333333333333333332