________________ 333333333333333333333333333333222333222222222 -caca caca cacea श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 2000020कदाचिदनयोवृद्धिर्भवति कदाचिन्नेति, द्रव्यपर्याययोः सकाशात् परिस्थूरत्वात् क्षेत्रकालयोरिति ca भावार्थः। द्रव्यवृद्धौ तु पर्याया वर्द्धन्त एव, पर्यायवृद्धौ च द्रव्यं भाज्यम् / द्रव्यात् पर्यायाणां सूक्ष्मतरत्वात् अक्रमवर्तिनामपि च वृद्धिसंभवात् कालवृद्धयभावो भावनीय इति गाथार्थः // 36 // . a (वृत्ति-हिन्दी-) काल जब अवधिज्ञान का विषय हो, यहां 'काल' पद से (प्रकरण वश) काल-वृद्धि अर्थ गम्य होता है (अर्थात् जब काल की वृद्धि को अवधि ज्ञान अपना विषय : बनाए तो), चारों की, अर्थात् द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव -इनकी वृद्धि होती है। यहां चारों का / सामान्य रूप से ग्रहण किया गया है (चारों को अलग-अलग नाम से नहीं कहा गया है)। काल की भजना है, अर्थात् विकल्प से कथनीय है। अर्थात् क्षेत्र की वृद्धि होने पर, कभी तो " ca काल की वृद्धि होती है और कभी नहीं भी होती। ऐसा कैसे? (उत्तर है-) क्योंकि क्षेत्र " a (अपेक्षाकृत) सूक्ष्म होता है और काल (अपेक्षाकृत) स्थूल होता है। जब द्रव्य व पर्याय . & वृद्धिगत हों। “अकारान्त पद में द्वितीया बहुवचन में 'ए' होता है, स्त्रीलिंग में तृतीया आदि, G (अर्थात्) सप्तमी व षष्ठी विभक्ति के एकवचन में भी एकार होता है" -इस (प्राकृत व्याकरण के) लक्षण के अनुसार, यहां 'वुड्ढीए' (वृद्धौ) इस प्राकृत पद में सप्तमी विभक्ति का सद्भाव : सिद्ध होता है (अतः अर्थ होगा- वृद्धि होने पर)। इसी प्रकार अन्यत्र भी प्राकृत-शैली के .. 1 अनुरूप यह जान लेना चाहिए कि पदों के अन्त में कौन सी विभक्ति प्रयुक्त हुई है। द्रव्य व " पर्याय -इन दोनों की वृद्धि होने पर, क्षेत्र व काल -इन दोनों की ही भजना है। 'तु' यह शब्द ca ‘एवकार' को व्यक्त करता है। तात्पर्य यह है कि (द्रव्य-पर्याय की वृद्धि होने पर), क्षेत्र व 1 & काल की कभी वृद्धि होती है, और कभी नहीं, क्योंकि द्रव्य व पर्याय की तुलना में क्षेत्र व काल स्थूल होते हैं। द्रव्य की वृद्धि होने पर तो पर्यायों में वृद्धि होगी ही, किन्तु पर्यायों की , 8 वृद्धि होने पर द्रव्य में वृद्धि की भजना है, क्योंकि द्रव्य की तुलना में पर्याय अधिक सूक्ष्म होते , & हैं, और चूंकि द्रव्य में अक्रमवर्ती-पर्यायों (स्पर्श रसादि गुणों) की भी वृद्धि संभावित है, . इसलिए (पर्याय-वृद्धि होने पर भी) काल-वृद्धि नहीं (भी) होती -ऐसा समझ लेना चाहिए। < यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ 36 // (हरिभद्रीय वृत्तिः) अत्र कश्चिदाह-जघन्यमध्यमोत्कृष्टभेदभिन्नयोः अवधिज्ञानसंबन्धिनोः क्षेत्रकालयोः अङ्गुलावलिकाऽसंख्येयभागोपलक्षितयोः परस्परतः प्रदेशसमयसंख्यया परिस्थूरसूक्ष्मत्वे सति -88888888888888888888888888888888888881 - 198 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)