________________ acecacecaceaect 000000000 नियुक्ति गाथा-36 (हरिभंद्रीय वृत्तिः) एवं तावत् परिस्थूरन्यायमङ्गीकृत्य क्षेत्रवृद्धया कालवृद्धिरनियता, कालवृद्धया च क्षेत्रवृद्धिः प्रतिपादिता।साम्प्रतं द्रव्यक्षेत्रकालभावापेक्षया यवृद्धौ यस्य वृद्धिर्भवति, यस्य वा न भवति-अमुमर्थमभिधित्सुराह (नियुक्तिः) काले चउण्ड वुड्डी, कालो भइयव्बु खित्तवुडीए। वुड्डीए दव्दपज्जव, भइयव्वा खित्तकाला उ॥३६॥ [संस्कृतच्छायाः-काले चतुर्णा वृद्धिः, कालो भक्तव्यः क्षेत्रवृद्धौ।वृद्धौ द्रव्यपर्याययोः भक्तव्यौ क्षेत्रकालौ।] ___ (वृत्ति-हिन्दी-) इस प्रकार, ‘परिस्थूल न्याय' (अर्थात् किसी सूक्ष्मता में न जाकर, . & मोटे तौर पर निरूपण करना -इस नीति) को स्वीकार कर, क्षेत्र-वृद्धि से अनियत कालगत : 8 वृद्धि, और काल-वृद्धि से क्षेत्र-गत वृद्धि का होना बताया गया। अब द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव : की अपेक्षा से किसी की वृद्धि से किसी (अन्य) की वृद्धि होती है या किसी की वृद्धि नहीं है ce होती -इस अर्थ को बताने हेतु (आगे की गाथा) कह रहे हैं (36) __ (नियुक्ति-अर्थ-) काल की वृद्धि होने पर चारों (द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव) की वृद्धि, होती (ही) है। क्षेत्र की वृद्धि में काल-वृद्धि भजनीय (विकल्प-योग्य) है। द्रव्य व पर्याय की " a वृद्धि होने पर क्षेत्र और काल की वृद्धि भजनीय (विकल्प-योग्य) होती है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) काले' अवधिज्ञानगोचरे, वर्धमान इति गम्यते। चतुर्णाम्' द्रव्यादीनां c वृद्धिर्भवति, सामान्याभिधानात्।कालस्तु 'भक्तव्यः' विकल्पयितव्यः क्षेत्रस्य वृद्धिः क्षेत्रवृद्धिः, तस्यां क्षेत्रवृद्धौ सत्याम, कदाचिद्वर्धते कदाचिन्नेति।कुतः? क्षेत्रस्य सूक्ष्मत्वात् कालस्य च // परिस्थूरत्वादिति।द्रव्यपर्यायौ तु वर्धेते।सप्तम्यन्तता चास्य “ऐ होति अयारन्ते, पर्यमि बिइयाए . बहुसु पुलिस। तइयाइछट्ठीसत्तमीण एगमि महिलत्ये 1r [एत् भवति अकारान्ते पदे, द्वितीयायां बहुषु / & पुंलिजेतृतीयादिषु षष्ठीसप्तम्योः एकस्मिन् महिलायें // ] अस्माल्लक्षणात् सिद्ध्यति।एवमन्यत्रापि , प्राकृतशैल्या इष्टविभक्त्यन्तता पदानामवगन्तव्येति।तथा वृद्धौ च, द्रव्यं च पर्यायश्च द्रव्यपर्यायौ " तयोः वृद्धौ सत्यां 'भक्तव्यौ' विकल्पनीयौ क्षेत्रकालावेव। तुशब्दस्य एवकारार्थत्वात्, - 828ce@pc@ @ @ @ @ @ @ @ 197 222233333333333333333333333333333333333333333