________________ Icecacaceenacace 900000000001 2222222222222222222222222222222222222222222221 नियुक्ति-गाथा-31 पहली व दूसरी (चतुरस घन-विन्यास) स्थिति- आकाश के एक-एक प्रदेश पर एक-एक ca अग्नि जीव रखे जाएं और एक चतुरस (चतुष्कोण, चौकोर) जैसी आकृति हो। मान लें कि तीन & आकाश-प्रदेशों की, एक के ऊपर एक, तीन पंक्तियां हों, इनके नौ प्रदेशों में प्रत्येक पर एक-एक जीव क हों तो कुल जीवों की संख्या नौ हुई। अब प्रत्येक जीव के ऊपर की ओर, और नीचे की ओर 1-1 जीव 4 और बैठाएं जायें, इस तरह एक-एक प्रदेश पर 3-3 जीव, और कुल मिलाकर 27 जीव अवस्थित हुए। " इस प्रकार, ऊपर नीचे जीवों के स्थित होने से, अर्थात् छहों दिशाओं में जीवों की अवगाहना के कारण, एक 'चतुरस घन' का स्वरूप बन गया। इसी तरह, समस्त अग्नि-जीवों को अवस्थित किया जाय। यह एक स्थिति हुई। दूसरी स्थिति इस प्रकार है- पहले विन्यास में आकाश के एक प्रदेश में एक ही जीव रखा a गया था। किन्तु इस दूसरी स्थिति में एक जीव को उतने आकाश-प्रदेशों में रखा जाएगा, जितनों में " ce उसकी अवगाहना सम्भव है। अग्नि-जीव की अवगाहना असंख्य प्रदेशात्मक मानी गई है। निश्चित " ही पहली स्थिति की तुलना में इस दूसरी स्थिति में जीवों द्वारा व्याप्त क्षेत्र अधिक होगा, वस्तुतः असंख्यात गुना होगा। तीसरी व चौथी स्थिति 'प्रतर' की है। एक-एक आकाश-प्रदेश पर एक-एक जीव रखे जाएं। (उनके ऊपर-नीचे जीव नहीं रखे जाएंगें)। इस प्रकार, पंक्तिबद्ध अनेक श्रेणी बनती जाएंगी। यह a तिरछा फैला हुआ विन्यास 'प्रतर' है। चौथी स्थिति में एक जीव को उसकी अवगाहना-योग्य आकाश-प्रदेशों पर रखा जाएगा। निश्चय ही 'चतुरस्र घन' की तुलना में 'प्रतर' की दोनों स्थितियों में , जीवों द्वारा व्याप्त क्षेत्र असंख्यातगुना अधिक होगा। - पांचवी व छठी स्थिति 'श्रेणी की है। श्रेणी एक ही पंक्ति की बनाई जाएगी, क्योंकि अनेक श्रेणियों से तो 'प्रतर' विन्यास बनाया जा चुका है। इसमें एक-एक आकाश-प्रदेश पर एक-एक ही जीव अवस्थित होंगे और 'सूई' के आकार की यह पंक्ति दीर्घ, दीर्घतर रूप से बढ़ती जाएगी। छठी " * स्थिति में अवगाहना-योग्य प्रदेशों में जीवों को अवस्थित किया जाएगा। निश्चय ही इस अंतिम प्रकार में जो सूई-तुल्य श्रेणी निर्मित होगी, वह प्रतर की तुलना में असंख्यातगुनी होगी। a पूर्वोक्त छहों स्थितियों में पहली पांच स्थितियां आगम-अनुमोदित न होने से मान्य नहीं है। क्योंकि इन पांचों में व्याप्त जीव-क्षेत्र उतना अधिक नहीं हो पाता, जितना शास्त्रकार को या . a आगमानुमोदित परमावधि के उत्कृष्ट क्षेत्र के रूप में अभीष्ट हो। दूसरा कारण यह भी है कि इन " स्थितियों में आकाश के एक प्रदेश पर एक जीव को अवगाहित कराया जाता है, जो आगमानुमोदित 888888888888888888888888888888888888888888888 . (r)necessconce0c000000908 189