________________ . 232223333333333333333333333333333333333333333 -acaca cace caca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) POOOOOइन स्थितियों में अग्नि जीवों द्वारा व्याप्त क्षेत्र अल्प होगा और कहीं-कहीं स्वसिद्धान्त का | & विरोध भी सम्भावित है। किन्तु छठा प्रकार सूत्र-अनुरूप (अविरुद्ध) होता है। इस प्रकार, . 4 (छठे प्रकार के रूप में) जो श्रेणी का निर्माण होगा, (अर्थात् निजी अवगाहनायुक्त समस्त : & अग्नि-जीवों की जो श्रेणीबद्ध स्थिति बनेगी) उसे अवधिज्ञानी के सभी दिशाओं में शरीर-: पर्यन्त घुमाया जाये, तो वह श्रेणी असंख्येय लोक-प्रमाण क्षेत्रों को अलोक में भी व्याप्त कर ल लेगी। वह व्याप्त क्षेत्र (ही) अवधि ज्ञान का उत्कृष्ट क्षेत्र है। यह कथन सामर्थ्य की दृष्टि से ही , किया गया है, क्योंकि इतने क्षेत्र में द्रष्टव्य को ही तो देखा जा सकता है, किन्तु अलोक में तो . कोई द्रष्टव्य होता ही नहीं। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ।31 विशेषार्थ नन्दीसूत्र (सू. 15) में भी इसी उदाहरण द्वारा परमावधि ज्ञान की उत्कृष्ट क्षेत्र-मर्यादा का & निरूपण इस प्रकार किया है- समस्त सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त अग्निकाय के सर्वाधिक >> जीव सर्वदिशाओं में निरन्तर जितना क्षेत्र परिपूर्ण करें, उतना ही उत्कृष्ट क्षेत्र परमावधिज्ञान का : & निर्दिष्ट है। तात्पर्य यह है कि पांच स्थावरों में सबसे कम तेजस्काय के जीव हैं, क्योंकि अग्नि के जीव / सीमित क्षेत्र में ही पाये जाते हैं। सूक्ष्म जीव सम्पूर्ण लोक में, तथा बादर अढ़ाई द्वीप (मनुष्यलोक) में , होते हैं। तेजस्काय के जीव चार प्रकार के होते हैं। (1) पर्याप्त तथा अपर्याप्त सूक्ष्म तथा (2) पर्याप्त एवं 8 अपर्याप्त बादर। इन चारों में से प्रत्येक में असंख्यात जीव होते हैं। इन जीवों की उत्कृष्ट संख्या तीर्थकर 1 & भगवान् अजितनाथ के समय में हुई थी। चूर्णिकार के अनुसार जब पांच भरत और पांच ऐरावत में - 8 मनुष्यों की संख्या पराकाष्ठा पर होती है, तब सर्वाधिक संख्या में अग्नि-जीव होते हैं, क्योंकि लोगों 4 की बहुलता होने से पचन-पाचन क्रियाएं प्रचुर होती हैं। द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथ के समय में , ca अग्नि के जीव पराकाष्ठा पर थे, क्योंकि उस समय मनुष्यों की संख्या भी अपनी पराकाष्ठा पर थी। . उस समय अग्नि-जीवों की उत्पत्ति भी निराबाध थी, क्योंकि महावृष्टि आदि का व्याघात नहीं था। अग्नि-जीवों से व्याप्त क्षेत्र को परमावधि का उत्कृष्ट क्षेत्र बताया गया है। इस सन्दर्भ में जीवों की आकाश-प्रदेशों में अवगाहना किस प्रकार मानी जाय -यह विचारणा होती है। अतः ca कल्पना का सहारा लेना पड़ता है। असंख्यात-प्रदेशी लोकाकाश में अग्नि-जीवों के व्याप्त होने की . तीन प्रमुख स्थितियां सम्भावित हैं- घन, प्रतर व श्रेणी। इन तीनों में भी प्रत्येक के 2-2 भेद हैं। इस // प्रकार उन जीवों की भी अवस्थिति के कुल छः भेद हो जाते हैं। इन छहों प्रकारों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है- 188 89c98cence(r)(r)(r)(r)(r)cene