________________ - 232223333333333333333333333333332322222222222 cacacecacacaca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) OOOOOOO नहीं है, क्योंकि एक आकाश-प्रदेश पर एक जीव की अवगाहना नहीं हो सकती, अतः यह असत् ca कल्पना है। फिर भी घन व प्रतर की तुलना में श्रेणी (सूची) की रचना में बहुत अधिक क्षेत्र स्पृष्ट होता , है, इस दृष्टि से छठे विकल्प की स्थिति को ग्राह्य माना गया है। इस सूई रूप श्रेणी को अवधिज्ञानी , 4 की देह के पर्यन्तवर्ती भाग से सब दिशाओं में घुमाया जाय, वह सूची इतनी बड़ी होगी कि अलोक में , a भी लोकप्रमाण असंख्य खण्डों को स्पर्श करेगी। वह जितने क्षेत्र को अर्थात् (अर्थात् असंख्यात , a लोकप्रमाण क्षेत्र को) स्पृष्ट करेगी, वह परमावधि ज्ञान का उत्कृष्ट क्षेत्र है। - यहां यह ज्ञातव्य है कि यद्यपि समस्त अग्निकाय के जीवों की श्रेणी-सूची कभी किसी ने बनाई नहीं है और न उसका बनना संभव ही है। अलोकाकाश में कोई मूर्त पदार्थ भी नहीं है जिसे अवधिज्ञानी जाने / किन्तु परमावधिज्ञान का सामर्थ्य प्रदर्शित करने के लिए यह मात्र कल्पना की गई है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) एवं तावज्जघन्यमुत्कृष्टं चावधिक्षेत्रमभिहितम्, इदानीं विमध्यमप्रतिपिपादयिषया , एतावत्क्षेत्रोपलम्भे चैतावत्कालोपलम्भः, तथा एतावत्कालोपलम्भे चैतावत्ोत्रोपलम्भ इत्यस्यार्थस्य प्रदर्शनाय चेदं गाथाचतुष्टयं जगाद शास्त्रकारः नियुक्तिः) अंगुलमावलियाणं, भागमसंखिज्ज दोसुसंखिज्जा। अंगुलमावलिअंतो, आवलिआ अंगुलपुहुत्तं // 32 // हत्थंमि मुहुत्तन्तो, दिवसंतो गाउयंमि बोद्धव्यो। जोयण दिवसपुहुत्तं, पक्खन्तो पण्णवीसाओ // 33 // भरहंमि अद्धमासो, जंबूदीवंमि साहिओ मासो। वासं च मणुअलोए, वासपुहुत्तं च रुयगंमि // 34 // संखिज्जंमि उकाले, दीवसमुद्दा वि हुंति संखिज्जा। कालंमि असंखिज्जे, दीवसमुद्दा उ भइयव्वा // 35 // [संस्कृतच्छायाः-अलि-आवलिकयोः भागमसंख्येयं द्वयोः संख्येयौ / अङ्गुलमावलिकान्तरावलिकाa अङ्गुलपृथक्त्वम् // हस्ते मुहूर्तान्तर्दिवसान्तर्गव्यूते बोद्वव्यः। योजने दिवस-पृथक्त्वं पक्षान्तः पञ्चविंशतिम् / भरतेऽर्द्धमासः, जम्बूद्वीपे साधिको मासः।वर्ष च मनुजलोके वर्षपृथक्त्वं च रुचके।संख्येये तु काले द्वीपसमुद्रा अपि भवन्ति संख्येयाः ।काले असंख्येये द्वीपसमुद्रास्तु भक्तव्याः॥ - 190 (r)(r)cr(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8 8