________________ -aaaacacaca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 200mmनहीं। वह प्रथम व द्वितीय समय में अत्यन्त सूक्ष्म होता है, किन्तु चौथे समय में वह ce अतिस्थूल हो जाता है, इसलिए तीसरे समय तक के आहारक (स्वरूप) को ही (अतिसूक्ष्म , होने की) वैसी योग्यता प्राप्त होती है, इसलिए उसका यहां उसका यहां ग्रहण किया गया है। " अन्य लोग 'तीन समय के आहारक' की व्याख्या इस प्रकार करते हैं- आयाम व , विष्कम्भ (लम्बाई व चौड़ाई) को संकुचित करने के दो समय, और सूची रूप में उत्पत्ति (का , एक समय, कुल) मिला कर तीन समय होते हैं, इनमें चूंकि विग्रह गति नहीं होती (क्योंकि : उत्पत्ति किसी अन्य देश में जाकर नहीं होती), इसलिए इन समयों में जीव 'आहारक' रहता, है, इसलिए उत्पत्ति के समय में ही 'तीन समय का आहारक' सूक्ष्म पनक जीव जघन्य , a अवगाहना वाला होता है, इसलिए वह जघन्य अवगाहना प्रमाण ही अवधि क्षेत्र का जघन्य " व क्षेत्र होता है। किन्तु यह व्याख्यान युक्तियुक्त नहीं है, क्योंकि 'तीन समयों में आहारक' होने से का विशेषण पनक जीव का है (न कि महामत्स्य का), मत्स्य के आयाम व विष्कम्भ : a (लम्बाई-चौड़ाई) को संकुचित करने के समयों में 'पनक' का समय नहीं जुड़ने से, (पनक, जीव के साथ) 'तीन समय के आहारक' इस विशेषण की असंगति हो जाएगी। अब और . अधिक विस्तार से कहना अपेक्षित नहीं रह गया है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ 30 // विशेषार्थ गाथा में 'पणग' अर्थात् पनक शब्द नीलम-फूलन (निगोद) के लिए आया है। सूत्रकार ने बताया है कि सूक्ष्म पनक जीव का शरीर तीन समय आहार लेने पर जितना क्षेत्र अवगाढ़ करता है, . ca उतना जघन्य अवधिज्ञान का क्षेत्र होता है। निगोद के दो प्रकार होते हैं- (1) सूक्ष्म (2) बादर। प्रस्तुत सूत्र में 'सूक्ष्म निगोद' को ग्रहण , a किया गया है- 'सुहमस्स पणगजीवस्स' / सूक्ष्म निगोद उसे कहते हैं जहां एक शरीर में अनन्त जीव - होते हैं। ये जीव चर्म-चक्षुओं से दिखाई नहीं देते, किसी के भी मारने से मर नहीं सकते तथा सूक्ष्म / निगोद के एक शरीर में रहते हुए वे अनन्त जीव अन्तर्मुहूर्त से अधिक आयु नहीं पाते। कुछ तो है ca अपर्याप्त अवस्था में ही मर जाते हैं तथा कुछ पर्याप्त होने पर। ____ एक आवलिका असंख्यात समय की होती है तथा दो सौ छप्पन आवलिकाओं का एक . & 'खुड्डाग भव' (क्षुल्लक-क्षुद्र भव) होता है। यदि निगोद के जीव अपर्याप्त अवस्था में निरन्तर मरण , करते रहें तो एक मुहूर्त में वे 65536 बार जन्म-मरण करते हैं। इस अवस्था में उन्हें वहां असंख्यातकाल , बीत जाता है। - 18480@c(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 222222222222222233333333333333333333333333333