________________ 3-0amRamance 000000000 22222222222222222222222222 नियुक्ति गाथा-30 वह प्रथम समय में अपने शरीर में व्याप्त समस्त आत्म-प्रदेशों की मोटाई को a संकुचित कर 'प्रतर' बनाता है। उस प्रतर की मोटाई अङ्गुल के असंख्येय भाग प्रमाण होती है | // 2 // उस प्रतर की लम्बाई-चौड़ाई भी अपने देह-प्रमाण के अनुरूप होती है। दूसरे समय में वह अपने ही सामर्थ्य से उस प्रतर को संकुचित कर मत्स्यदेह प्रमाण लम्बाई-चौड़ाई , वाले आलमप्रदेशों की सूची बनाता है॥3॥ उस सूची की मोटाई-चौड़ाई अंगुल के असंख्येय भाग प्रमाण होती है। तीसरे समय में उस सूची को वह संकुचित करता है ||4|| और अंगुल के असंख्येय भाग प्रमाण वाले अपने शरीर के बाहरी प्रदेश में सूक्ष्म : परिणति वाले ‘पनक' के रूप में उत्पन्न होता है। उत्पत्ति के तीसरे समय में पनक के शरीर 4 का जितना प्रमाण होता है (उतने प्रमाण वाला क्षेत्र अवधि ज्ञान का जघन्य क्षेत्र होता है) 15 // a (हरिभद्रीय वृत्तिः) अत्र कश्चिदाह- किमिति महामत्स्यः? किं वा तस्य तृतीयसमये निजदेहदेशे , समुत्पादः? त्रिसमयाहारकत्वं वा कल्प्यत इति?, अत्रोच्यते, स एव हि महामत्स्यः त्रिभिः / समयैरात्मानं संक्षिपन् प्रयत्नविशेषात् सूक्ष्मावगाहनो भवति, नान्यः, प्रथमद्वितीयसमययोश्च * अतिसूक्ष्मः चतुर्थादिषु चातिस्थूरः त्रिसमयाहारक एव च तद्योग्य इत्यतस्तद्ग्रहणमिति।। 'अन्ये तु व्याचक्षते- त्रिसमयाहारक इति। आयामविष्कम्भसंहारसमयद्वयं सूचिसंहरणोत्पादसमयश्चेत्येते त्रयः समयाः, विग्रहाभावाच्चाहारक एतेषु, इत्यत उत्पादसमय a एव त्रिसमयाहारकः सूक्ष्मः पनकजीवो जघन्यावगाहनश्च, अतस्तत्प्रमाणं जघन्यमवधिक्षेत्रमिति। " 4 एतच्चायुक्तम् , त्रिसमयाहारकत्वस्य पनकजीवविशेषणत्वात्, मत्स्यायामविष्कम्भसंहरण समयद्वयस्य च पनकसमयायोगात्, त्रिसमयाहारकत्वाख्यविशेषणानुपपत्तिप्रसङ्गात् इति, अलं प्रसभेनेति गाथार्थः // 30 // - (वृत्ति-हिन्दी-) यहां किसी ने आशंका प्रस्तुत की -यह महामत्स्य कौन है? क्या उसकी अपने शरीर के एक भाग में उत्पत्ति सम्भव है? क्या तीन समय तक आहारक होना। संगत होता है? समाधान इस प्रकार है- महामत्स्य ही ऐसा होता है कि वह तीन समयों में संकुचित करते हुए प्रयत्न विशेष से सूक्ष्म अवगाहना वाला हो जाता है, अन्य कोई (जीव) ___(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 183