________________ 333333333333330232222222222222222222222232322 -acacacacacaca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0202000902 (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) क्षेत्र परिमाण के जघन्य, मध्यम व उत्कृष्ट भेद होते हैं। . इनमें प्रायः जघन्य परिमाण का कथन पहले होता है, इसलिए उसे ही प्रतिपादित कर रहे . हैं- (यावती) जितने परिमाण वाली। 'त्रिसमयाहारक' वह है जो तीन समयों में आहार : ग्रहण करता है, सूक्ष्म यानी सूक्ष्म नाम कर्म के उदय से जो सूक्ष्म हो, पनक जो जीव, वह . पनक जीव जो वनस्पति-विशेष है, उसकी, अवगाहना यानी जिसमें प्राणी अवगाहित होते हैं / 4 अर्थात् शरीर। जघन्य यानी सब से कम अवधि का क्षेत्र है। 'तु' यह शब्द 'एवकार' अर्थ को है a व्यक्त कर रहा है, अत: वह अवधारण करता है, वह (अवधारण) इस प्रकार है- अवधि का " a जघन्य क्षेत्र इतना ही है- यह गाथा का अक्षरार्थ हुआ। (हरिभद्रीव वृत्तिः) अत्रच संप्रदायसमधिगम्योऽयमर्थः योजनसहसमानो मत्स्यो मृत्वा स्वकायदेशे यः। / उत्पद्यते हि सूक्ष्मः, पनकत्वेनेह स ग्राह्यः // 1 // संहृत्य चाद्यसमये, स ह्यायामं करोति च प्रतरम्। संख्यातीताख्याङ्गुलविभागबाहुल्यमानं तु॥२॥ स्वकतनुपृथुत्वमात्र, दीर्घत्वेनापि जीवसामर्थ्यात्। ' तमपि द्वितीयसमये, संहृत्य करोत्यसौ सूचिम्॥३॥ संख्यातीताख्यालविभागविष्कम्भमाननिर्दिष्याम्। निजतनुपृथुत्वदैया, तृतीयसमये तु संहृत्य // 4 // उत्पद्यते च पनकः, स्वदेहदेशे स सूक्ष्मपरिणामः। समयत्रयेण तस्यावगाहना यावती भवति // 5 // a (वृत्ति-हिन्दी-) संप्रदाय (परम्परा-विशेष) द्वारा समझा गया अर्थ यहां इस प्रकार 33.33 333333333333333333333333333333333333333 .. हजार योजन प्रमाण वाला मत्स्य मर कर अपने ही शरीर के एक (बाह्य) भाग में , सूक्ष्म पनक (विशेष वनस्पति) के रूप में उत्पन्न होता है, वही पनक जीव यहां ग्राह्य है। // 182 (r)(r)(r)(r)(r)n@RO9000000000000