________________ -Ramaee नियुक्ति-माथा- 30002020poor 12233333333333333333333333333333333333333 || भाव या द्रव्य-पर्याय, उससे सम्बन्धित जो अवधिज्ञान है, वह 'भावावधि' है। 'च' शब्द | 4 समुच्चयार्थक है। (एषः) -यह यानी अभी-अभी जिसका निरूपण किया गया है (वह निक्षेप सात प्रकार का है)। 'खलु' यह पद 'एवकार' (ही, निश्चय से) अर्थ को अभिव्यक्त कर रहा है , और वह 'अवधारण' करता है कि निक्षेप यानी निक्षेपण, अर्थात् अवधि के सप्तविध प्रकार बस ये ही हैं, अन्य कोई नहीं हैं। (यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ) // 29 // (हरिभद्रीय वृत्तिः) इदानी क्षेत्रपरिमाणाख्यद्वितीयद्वारावयवार्थाभिधित्सयाऽऽह नियुक्तिः) - जावझ्या तिसमयाहारगस्स सुहमस्स पणगजीवस्स। ओगाहणा जहण्णा, ओहीखित्तं जहण्णं तु // 30 // [संस्कृतायाः-यावती त्रिसमयाहारकस्य सूक्ष्मस्य पनकजीवस्य।अवगाहना जघन्या अवधिक्षेत्र & जघन्यं तु] (वृत्ति-हिन्दी-) अब, क्षेत्र-परिमाण नामक द्वितीय निक्षेप-द्वार का अवयवार्थ बताने , के लिए (शास्त्रकार) कह रहे हैं (30) ___(नियुक्ति-अर्व-) तीन समय के आहारक (किसी) सूक्ष्म पनकजीव (वनस्पतिविशेष) की जितनी कम से कम अवगाहना होती है, उतना ही (क्षेत्र) अवधि-ज्ञान का क्षेत्रपरिमाण होता है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) तत्र क्षेत्रपरिमाणं जघन्यमध्यमोत्कृष्टभेदभिन्नं भवति। यतश्च प्रायो जघन्यमादौ, अतस्तदेव तावत्प्रतिपालते-'यावती यत्परिमाणा, त्रीन्समयाव आहारयतीति : त्रिसमयाहारकस्तस्य, सूक्ष्मनामकर्मोदयात् सूक्ष्मः तस्य, पनकश्वासौ जीवश्च पनकजीवः वनस्पतिविशेष इत्यर्थः, तस्याअवगाहन्ति यस्यां प्राणिनःसा अवगाहना तबुरित्यर्थः, 'जघन्या' सर्वस्तोका, अवधेः क्षेत्रं अवधिक्षेत्रम्, 'जघन्यं सर्वस्तोकम, तुशब्द एवकारावः, स चावधारणे, . तस्य चैवं प्रयोगः-अवधेः क्षेत्रं जघन्यमेतावदेवेति गाथाक्षरार्थः। (r)(r)(r)(r)(r)000000000000000 181