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________________ 333333333333333333333333333333333333333333333 | ca ca ca ca ca ca ca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) nrna mom अवधिज्ञान क्षायोपशमिक है क्योंकि वह क्षयोपशम से उत्पन्न होता है। इस प्रसंग में क्षय और उपशम की प्रक्रिया इस प्रकार है- उदयावलिका में प्रविष्ट ज्ञानावरण का क्षय और अनुदीर्ण ca ज्ञानावरण कर्म का उपशम, जिसका तात्पर्य हैca 1. उदयावलिका में आने योग्य कर्मपुद्गलों को विपाक के अयोग्य बना देना, प्रदेशोदय में , बदल देना। 2. विपाक को मंद कर देना, तीव्र रस का मंद रस में परिणमन कर देना। आ. हरिभद्रसूरि ने उपशम का अर्थ 'उदय का निरोध' किया है और आ. मलयगिरि ने & उसका अर्थ 'विपाकोदय का विष्कम्भ' किया है। चूर्णिकार ने क्षयोपशम के दो प्रकारों का निरूपण किया है1. गुण के बिना होने वाला क्षयोपशम / 2. गुण की प्रतिपत्ति से होने वाला क्षयोपशम / गुण के बिना होने वाले अवधिज्ञान को समझाने के लिए चूर्णिकार ने एक रूपक का प्रयोग ch किया है। आकाश बादलों से आच्छन्न है। बीच में कोई छिद्र रह गया।उस छिद्र में से स्वाभाविक रूप & से सूर्य की कोई किरण निकलती है और वह द्रव्य को प्रकाशित करती है, वैसे ही अवधिज्ञानावरण का क्षयोपशम होने पर यथाप्रवृत्त अवधिज्ञान की प्राप्ति होती है, वह गुण के बिना होने वाला क्षयोपशम है। र क्षयोपशम का दूसरा हेतु है- गुण की प्रतिपत्ति। यहां गुण शब्द से चारित्र विवक्षित है। & चारित्र गुण की विशुद्धि से अवधिज्ञान की उत्पत्ति के योग्य क्षयोपशम होता है, वह गुणप्रतिपत्ति से होने वाला क्षयोपशम है। इस प्रकार कदाचित विशिष्ट गण की प्रतिपत्ति के बिना और कदाचित ca विशिष्ट गुण की प्रतिपत्ति से अवधिज्ञान उत्पन्न होता है। & शंका की गई है- अवधिज्ञान क्षायोपशमिक भाव में परिगणित है तो फिर नारकों और देवों , ca को होने वाले अवधि ज्ञान को भवप्रत्ययिक कैसे कहा गया? & उत्तर यह है कि वस्तुतः अवधिज्ञान क्षायोपशमिक भाव में ही है। नारकों और देवों को भी , क्षयोपशम से ही अवधिज्ञान होता है, किन्तु उस क्षयोपशम में नारकभव और देवभव प्रधान कारण & होता है, अर्थात् इन भवों के निमित्त से नारकों और देवों को अवधिज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम हो ही जाता है। इस कारण उनका अवधिज्ञान, भवप्रत्यय कहलाता है। यथा- पक्षियों की उड़ान-शक्ति , जन्म-सिद्ध है, किन्तु मनुष्य बिना वायुयान, जंघाचरण अथवा विद्याचरण लब्धि के गगन में गति " नहीं कर सकता। - 174 8 0@ @ @ @ @ @ @@@ @ @ @ @ 7777777777777777777777777
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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