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________________ -333333333333333333332222222333333333333333333 Reacecacecacee नियुक्ति गाथा-25 000000000 | कहा गया है कि अवधिज्ञानी प्रारम्भ में तैजस वर्गणा व भाषावर्गणा के अन्तरालवर्ती-गुरुलघु व | ca अगुरुलघु पर्याय वाले द्रव्य-पुद्गलों को जानता है। उनमें तैजसद्रव्यासन्न पुद्गल गुरुलघु होते हैं, जबकि भाषाद्रव्यासन्न पुद्गल अगुरुलघु होते हैं। मलधारी हेमचन्द्र ने यहां स्पष्टीकरण देते हुए कहा ce है कि उस अवधिज्ञानी के लिए अतिसूक्ष्म होने से तैजस शरीर के द्रव्य ग्रहण-योग्य नहीं होते और " ca अतिसूक्ष्म होने के कारण भाषा-द्रव्य भी ग्रहण-योग्य नहीं होते। किन्तु तैजस व भाषा के अन्तरालवर्ती द्रव्य गुरुलघु और अगुरुलघु-दोनों प्रकार के होते हैं, अतः वे ही अवधिज्ञान द्वारा ग्राह्य होते हैं (द्र. 3 विशेषा. भा. गा. 628-29) / (4) भाव की दृष्टि से- अवधिज्ञानी जघन्यतया प्रत्येक द्रव्य के संख्यात या असंख्यात पर्यायों , ca को तथा उत्कृष्टतया असंख्यात पर्यायों को जानता-देखता है। किन्तु नन्दी सूत्र में कहा गया है कि अवधिज्ञानी जघन्यतया व उत्कृष्टतया, दोनों रूपों में, अनन्त भावों को जानता-देखता है (द्र. सू. 25) / " किन्तु चूर्णिकार आदि व्याख्याताओं ने यह स्पष्ट किया है कि अनन्त भावों को जानता हुआ भी n & अवधिज्ञानी समस्त पर्यायों को नहीं जान पाता, क्योंकि वैसी शक्ति केवलज्ञानी में ही है। जिनभद्रगणी ने (द्र. विशेषा. भा. गाथा-623) द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की सूक्ष्मता का गणित की भाषा में प्रतिपादन किया है। काल सूक्ष्म है। क्षेत्र काल से भी असंख्येय गुण सूक्ष्म है। द्रव्य क्षेत्र से भी अनन्त गुण सूक्ष्म है। पर्याय द्रव्य से भी असंख्येय गुण अथवा संख्येय गुण सूक्ष्म है। काल , सूक्ष्म होता है। इसका हेतु यह है कि कमल के सौ पत्तों का भेदन करने में प्रतिपत्र के भेदन में - असंख्येय समय लगते हैं। इस दृष्टान्त के द्वारा हरिभद्र ने काल की सूक्ष्मता का निरूपण किया है। " काल की अपेक्षा क्षेत्र सूक्ष्मतर है। एक अंगुल की श्रेणी मात्र क्षेत्र में जो प्रदेश का परिमाण है उसके / प्रति प्रदेश में समय गणना की दृष्टि से असंख्येय अवसर्पिणी हो जाती हैं। एक अंगुल के श्रेणी मात्र 1 व क्षेत्र के प्रदेशों का परिमाण असंख्येय अवसर्पिणी के समयों के परिमाण जितना है। अवधिज्ञान के दो भेद हैं- (1) भवप्रत्यय, और (2) गुणप्रत्यय / भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान " ca जन्म लेते ही प्रकट होता है, जिसके लिए संयम, तप अथवा अनुष्ठानादि की आवश्यकता नहीं होती। 2 किन्तु क्षायोपशमिक अवधिज्ञान इन सभी की सहायता से उत्पन्न होता है। जो कर्म अवधिज्ञान में , रुकावट उत्पन्न करने वाले (अवधिज्ञानावरणीय) हैं, उनमें से उदयगत का क्षय होने से तथा अनुदित , c. कर्मों का उपशम होने से जो उत्पन्न होता है, वह क्षायोपशमिक अवधिज्ञान कहलाता है। ca अवधिज्ञान के स्वामी चारों गति के जीव होते हैं। भवप्रत्यय अवधिज्ञान देवों और नारकों " को तथा क्षायोपशमिक अवधिज्ञान मनुष्यों एवं तिर्यञ्चों को होता है। उसे 'गुणप्रत्यय' भी कहते हैं। - (r) (r)ce80@cr@ @ce@ @cR@ @ @ @ @ 173
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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