________________ 22222222222222333333333322222223333333333333 -caca caca cace ce श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000000 विशेषार्थ अवधि ज्ञान का विस्तार से वर्णन नन्दीसूत्र तथा प्रज्ञापना (पद-33) में है। वहां देवों, नारकों, . a मनुष्यों, तिर्यञ्चों के अवधिज्ञान के कारण तथा अवधिज्ञान की जघन्य व उत्कृष्ट क्षेत्र-मर्यादा का , पृथक्-पृथक् निरूपण भी है। अवधि ज्ञान के छः मुख्य प्रकारों के स्वरूप को भी वहां स्पष्ट किया गया / है। इस सम्बन्ध में विशेष जानकारी उन-उन ग्रन्थों से प्राप्त की जा सकती है। प्रस्तुत गाथा में , अवधिज्ञान की द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव की दृष्टि से जघन्य व उत्कृष्ट क्षेत्र-सीमा का निर्देश किया गया है। " (1) क्षेत्र की दृष्टि से- लोक-क्षेत्र के असंख्यातवें भाग से लेकर, एक-एक प्रदेश बढ़ाते हुए, उत्कृष्टतया असंख्यात लोक परिमाण क्षेत्र तक अवधि-ज्ञान की क्षेत्र-मर्यादा बताई गई है। यहां यह " & जानना चाहिए कि 'असंख्यात लोक प्रमाण' क्षेत्र का वस्तुतः सद्भाव नहीं है, किन्तु उत्कृष्ट अवधिज्ञान 2 a (परमावधि ज्ञान) की सामर्थ्य को बताने के लिए 'असंख्यात लोक' का कथन है। आचार्य अकलंक ने (राजवार्तिक-1/22/4) में अवधिज्ञान के तीन भेद किये हैं- देशावधि, . ca परमावधि और सर्वावधि / देशावधि ज्ञान जघन्यतया उत्सेधांगुल के असंख्यात भाग मात्र क्षेत्र को " ca जानता है और उत्कृष्टतया सम्पूर्ण लोक को जानता है। परमावधि ज्ञान जघन्यतया एक प्रदेश अधिक >> & लोक प्रमाण विषय को जानता है और उत्कृष्टतया असंख्यात लोकों को जानता है। सर्वावधि ज्ञान , उत्कृष्टतया परमावधि के क्षेत्र से बाहर असंख्यात लोक प्रमाण क्षेत्रों को जानता है। इस ज्ञान के जघन्य आदि भेद नहीं होते। (2) काल की दृष्टि से- अवधिज्ञानी जघन्यतया अंगुल के असंख्यातवें भाग काल को : जानता-देखता है और उत्कृष्टतया असंख्यात उत्सर्पिणी व अवसर्पिणी परिमाण काल को जानता-.. देखता है। यहां काल को जानने से तात्पर्य है- उस काल में वर्तमान 'रूपी' द्रव्य, क्योंकि अवधि ज्ञान, ca अरूपी द्रव्य को विषय नहीं करता। अंगुल' से तात्पर्य प्रमाणांगुल से है- यह आचार्य मलयगिरि का , / मत है। एक अन्य मत के अनुसार 'उत्सेधांगुल' भी यहां ग्राह्य है। ce (3) द्रव्य की दृष्टि से-अवधिज्ञानी जघन्यतया अनन्तप्रदेशी पुद्गल-स्कन्ध से लेकर एकप्रदेशी, cद्विप्रदेशी आदि तक के सभी मूर्त द्रव्यों को जानता-देखता है। यहां व्याख्याकार ने अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के लिए एक विशेषण दिया है- तैजस व भाषा 0 c& द्रव्यों का मध्यवर्ती। इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है- उक्त विशेषण प्राथमिक (प्रतिपाती ज्ञान के " धारक) अवधिज्ञानी को ध्यान में रखकर किया गया है। आवश्यक-नियुक्ति की आगे 38वीं गाथा में | 172 (r)90@cRODece@ SAROOR@@@@