________________ -RRRRRRRece. निर्यक्ति-गाथा-25 &&&&&&&&&&&&&& & 222222323222333333333333333333333333333333333 है- तैजस वर्गणा एवं भाषा द्रव्य के वर्गणा के अपान्तरालवर्ती अनन्त प्रदेशी द्रव्य से लेकर विचित्र (एकप्रदेशी, द्विप्रदेशी आदि रूप में विविधतापूर्ण) वृद्धि करते हुए समस्त मूर्त द्रव्यों >> तक। और अवधि ज्ञान के (भावात्मक) विषय का (उत्कृष्ट) परिमाण है- प्रत्येक वस्तु के . असंख्यात पर्याय / इसलिए पुद्गलास्तिकाय और उसके पर्यायों को ध्यान में रखें तो ज्ञेय- 1 भेद से ज्ञान-भेद होने के कारण (अवधि ज्ञान की) अनन्त प्रकृतियां हो जाती हैं। (हरिभद्रीय वृत्तिः) आसां च मध्ये 'काश्चन' अन्यतमाः भवप्रत्यया' भवन्ति।अस्मिन् कर्मवशवर्तिनः प्राणिन इति भवः, स च नारकादिलक्षणः, स एव प्रत्ययः-कारणं यासां ताः भवप्रत्ययाः।। पक्षिणां गगनगमनवत्, ताश्च नारकामराणामेवातथा गुणपरिणामप्रत्ययाः क्षयोपशमनिर्वृत्ताः क्षायोपशमिकाः काश्चन, ताश्च तिर्यनराणामिति। आह-क्षायोपशमिके भावेऽवधिज्ञानं प्रतिपादितम् / नारकादिभवश्च औदयिकः, स, * कथं तासांप्रत्ययो भवतीति।अत्रोच्यते, ता अपि क्षयोपशमनिबन्धना एव, किंतु असावेव " क्षयोपशमः तस्मिन्नारकामरभवे सति अवश्यं भवतीतिकृत्वा भवप्रत्ययास्ता इति गाथार्थः // 25 // a. (वृत्ति-हिन्दी-) इन (समस्त प्रकृतियों) के मध्य में कुछ प्रकृतियां भवप्रत्यय " (जन्मजात) होती हैं। जहां कर्म के वशीभूत प्राणी रहते हैं, वह नारक आदि रूप ‘भव' होता है, वही भव जिसमें प्रत्यय या कारण है, वह 'भवप्रत्यय' (अवधिज्ञान की प्रकृति कही जाती है है।) जैसे पक्षियों के आकाश-गमन की सामर्थ्य जन्मजात होती है, वैसे ही मात्र नारकी व देवों को (जन्मजात) अवधिज्ञान प्राप्त होता है (जिसे भवप्रत्यय कहा जाता है)। इसी तरह, गुण-परिणाम प्रत्यय (आत्मीय परिणामशुद्धता-विशेष जिसमें कारण हैं, ऐसी) कुछ प्रकृतियां ल होती हैं जो (अवधि-ज्ञानावरणीय कर्म के) क्षयोपशम से उत्पन्न होने के कारण क्षायोपशमिक ca कही जाती हैं, जो तिर्यंचों व मनुष्यों में ही होती हैं। (वृत्ति-हिन्दी-) (शंका-) क्षायोपशमिक भाव में ही अवधिज्ञान का प्रतिपादन किया है आ गया है। किन्तु नरकादि जन्म तो औदयिक हैं, अतः उनमें भवप्रत्यय अवधिज्ञान कैसे कहा " a जाता है? समाधान यह है- भवप्रत्यय अवधि ज्ञान की वे प्रकृतियां भी क्षयोपशमजात ही हैं, " किन्तु चूंकि वह क्षयोपशम उन नारकी व देवों में अवश्य होता ही है, इस दृष्टि से उन्हें , 'भवप्रत्यय' कह दिया जाता है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 25 // &&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&& (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 171