SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 3333333333333333333333322 RaaaaaR श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000000 / (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) संख्यानं संख्या तामतीताः संख्यातीता असंख्येया इत्यर्थः। तथा संख्यातीतमनन्तमपि भवति, ततश्चानंन्ता अपि।तथा च खलुशब्दो विशेषणार्थः। किं विशिनष्टि? -क्षेत्रकालाख्यप्रमेयापेक्षयैवं संख्यातीताः, द्रव्यभावाख्यज्ञेयापेक्षया चानन्ता इति। अवधिज्ञानस्य' प्राग्निरूपितशब्दार्थस्य, सर्वाश्च ताः प्रकृतयश्च सर्वप्रकृतयः, प्रकृतयो भेदा अंशा इति पर्यायाः। एतदुक्तं भवति- यस्मादवधेः लोकक्षेत्रासंख्येयभागादारभ्य प्रदेशवृद्धया असंख्येयलोकपरिमाणम् उत्कृष्टम् आलम्बनतया क्षेत्रमुक्तम् / कालश्चावलिकाऽसंख्येयभागादारभ्य समयवृद्धया खल्वसंख्येयोत्सर्पिण्यवसर्पिणीप्रमाण उक्तः ।ज्ञेयभेदाच्च ज्ञानभेद & इत्यतः संख्यातीताः तत्प्रकृतयः इति। तथा तैजसवारद्रव्यापान्तरालवय॑नन्तप्रदेशकाद् / द्रव्यादारभ्य विचित्रवृद्धया सर्वमूर्त्तद्रव्याणि उत्कृष्टं विषयपरिमाणमुक्तम्, प्रतिवस्तुगतासंख्येय पर्यायविषयमानंच इति।अतः पुद्गलास्तिकायंतत्पर्यायांश्चाङ्गीकृत्य ज्ञेयभेदेन ज्ञानभेदादनन्ताः & प्रकृतय इति। (वृत्ति-हिन्दी-) संख्या का अर्थ है-- संख्यान (जिसकी गिनती की जा सके), उससे " जो अतीत हैं, वे संख्यातीत होते हैं, अर्थात् असंख्येय होते हैं। संख्यातीत अनन्त भी होते हैं, .. इसलिए वे (प्रकृतियां) अनन्त भी हो सकती) हैं। 'खलु' यह (अव्यय पद) विशेषण-अर्थ को 4 व्यक्त करता है। यह विशेषण रूप में क्या विशेष (अन्तर) बता रहा है? (वह यह अन्तर बता ल रहा है कि) क्षेत्र व काल रूप ज्ञेय की अपेक्षा से ही वे प्रकृतियां संख्यातीत हैं, द्रव्य व भाव , & रूप ज्ञेय की अपेक्षा से तो वे अनन्त हैं। (कौन संख्यातीत व अनन्त हैं?) अवधिज्ञान की, 2 जिसका शब्दार्थ पहले बता दिया गया है, वे सभी प्रकृतियां (असंख्यात व अनन्त हैं)। प्रकृति, & भेद, अंश -ये परस्पर पर्याय हैं। तात्पर्य यह है- चूंकि लोक-क्षेत्र के असंख्यात भाग से लेकर प्रदेश-वृद्धि करते हुए . असंख्यात लोक-परिमित क्षेत्र को अवधिज्ञान का उत्कृष्ट आलम्बन (विषय) बताया गया है। " अवधि का काल भी आवलिका के असंख्येय भाग से लेकर (क्रमशः) 'समय' की वृद्धि, & करते हुए असंख्यात उत्सर्पिणी व अवसर्पिणी काल प्रमाण बताया गया है। ज्ञेय के भेद से ज्ञान का भी भेद होता है, इसलिए उस (अवधि ज्ञान) की प्रकृतियां संख्यातीत (असंख्यात) होती हैं। इसी प्रकार, अवधि ज्ञान के (द्रव्यात्मक) विषय का उत्कृष्ट परिमाण बताया गया 3333333333333 33 __ 170 @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy