________________ बबRRRRR नियुक्ति-गाथा- 2599999999999 उक्त व्याख्यान-विधि गुरु को लक्ष्य कर बताई गई है। विनेय शिष्यों की योग्यता को देख कर उक्त विधियों का निर्धारण किया गया है। अनुयोग-विधि के ही ये विधियां विविध प्रकार हैं। ca प्राथमिक स्तर के शिष्य मूल विषय को ही नहीं जानते हैं, ऐसी स्थिति में पहले ही प्रौढ व्याख्यान देना 2 a उचित नहीं होता। अतः पहले उन्हें मूल सूत्र और उसका सीधा-सादा अर्थ बताना चाहिए। कभी-कभी , CM उपोद्घात (नियुक्ति) तथा निक्षेप (नियुक्ति) की भी प्रारम्भ में करणीयता बताई गई है, किन्तु वह / ca शिष्य की योग्यता के आधार पर है। मूल सूत्र से जोड़ने के लिए कभी-कभी भूमिका के रूप में कुछ " बताया जा सकता है. किन्त वह उसी सीमा तक कि शिष्य 'कन्फ्यूज्ड' (व्यामोह युक्त) न हो जाय। उसके बाद नियुक्ति का आश्रय लेकर सूत्रार्थ को स्पष्ट किया जाय। और उसके बाद ही प्रासंगिक व व विषय से परम्परया सम्बन्धित बातों को बताया जाय, ताकि शिष्य का ज्ञान क्रम से पूर्णता की ओर " & अग्रसर हो। निष्कर्ष यह है कि नियुक्तिकार ने इस गाथा में जो विधि बताई है, वह व्याख्याता, 2 प्रवचनकार व अध्यापक, सभी के लिए उपादेय है, क्योंकि इसका निर्धारण सर्वज्ञों के द्वारा, विशिष्ट ca ज्ञानियों द्वारा किया गया है और अधिक मनोवैज्ञानिक सिद्ध भी हुआ है। ||श्रुतज्ञान का निरूपण समाप्त हुआ। 223322222222222333333333333333333333333333333 - (हरिभद्रीय वृत्तिः) उक्तप्रकारेण श्रुतज्ञानस्वरूपमभिहितम् / साम्प्रतं प्रागभिहितप्रस्तावमवधिज्ञानमुपदर्शयन्नाह (नियुक्तिः) संखाईआओ खलु, ओहीनाणस्स सव्वपयडीओ। काओ भवपच्चइया, खओवसमिआओकाओऽविIR५॥ a. [संस्कृतच्छायाः- संख्यातीताः खलु अवधिज्ञानस्य सर्वप्रकृतयः। काश्चिद् भवप्रत्ययिताः, aक्षायोपशमिक्यः काश्चिद् अपि॥] (वृत्ति-हिन्दी-) उक्त रीति से श्रुतज्ञान का स्वरूप बता दिया गया। अब पहले कहे " गए प्रस्तुति-क्रम के अनुरूप अवधि ज्ञान के निरूपण हेतु (शास्त्रकार आगे की गाथा) कह , रहे हैं (25) ...(नियुक्ति-अर्थ-) अवधिज्ञान की समस्त प्रकृतियां (भेद) असंख्यात हैं। इनमें कुछ " (प्रकृतियां) 'भवप्रत्यय' होती हैं और कुछ क्षायोपशमिक' (गुणप्रत्यय)। (r) (r)cr@ @@0808080809000cr@90(r) 169