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________________ 3333333 &&&&&&&&&&&& 33333333333333 -(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)ce कमी प्रो. शास्त्री जी में उक्त क्षमता के दर्शन हुए और मैंने उन्हें आवश्यकनियुक्ति के हिन्दी अनुवाद के लिए भाव प्रकट ही नहीं किए, साग्रह निवेदन भी किया। इसी प्रसंग में यह भी / & उल्लेखनीय है कि मेरे लक्ष्य और संकल्प का मार्गदर्शन और प्रेरणा देने का कार्य श्री चमनलाल जी " & मूथा, रायचूर द्वारा किया गया है। श्रीमूथा जी आगमस्वाध्यायी एवं अध्यवसाय के धनी हैं। दर्शन-2 धर्मशास्त्रों ग्रन्थों का समन्वय करने में तत्पर रहते हैं और प्राचीन साहित्य व धर्म परम्परा के विशेष ce पोषक मनस्वी हैं। मेरा सन् दो हजार का चतुर्मास रायचूर में हुआ था। वहां उनके पुनः निवेदन/आग्रह " & ने मेरे संकल्प में ऊर्जा का संचार किया और साथ में आवश्यक नियुक्ति (आ. भद्रबाहु) के मुद्रित दो . भाग भी उन्होंने मुझे प्रदान किए। किन्तु इसमें भी प्रमादवश विलम्ब होता गया और सन् 2005 के चातुर्मास में अम्बाला शहर में प्रो. शास्त्री जी को बुलाकर मैंने उन्हें यह कार्य सौंपा। इन्होंने कुछ पृष्ठ 2 & अनुवाद कर मुझे शीघ्र ही प्रेषित कर दिए थे, किन्तु मैंने अपने संकल्प और लक्ष्य को गौण कर दिया है & था, क्योंकि उन दिनों संघीय विग्रह स्थिति में उलझ गया था, फलतः ध्यान न दे सका अतः प्रो. शास्त्री ce जी भी मौन रहे। गत वर्ष पंचकूला चातुर्मास में पुनः सजगता/सक्रियता बढ़ी और शास्त्री जी द्वारा अनुवाद " & कार्य भी वृद्धिगत हुआ। सन 2009 के चातुर्मास में ग्रन्थ का प्रथम खण्ड (लगभग 350) पृष्ठ तैयार हो गया और अब . & (2010 ई. में) मुद्रित होकर पाठकों के समक्ष आ गया है। इस कार्य में भंडारी मुनि श्री सुमन्तभद्र (बाबाजी) का पूर्ण व प्रशसनीय सहयोग रहा है, a जिसके लिए उन्हें विशेष हार्दिक साधुवाद है। इसके अनुवाद के लिए प्रो. डॉ. दामोदर जी शास्त्री, है प्रकाशन के सहयोगी श्री दीवान चन्द जी जैन (साढौर वाले) लुधियाना, कम्प्यूटर टाईप सैटिंग . के लिए श्री आनन्द शास्त्री, मुद्रण के लिए श्री विष्णु शर्मा, बीकानेर तथा प्रकाशक/वितरक : ca अशोक जैन, व्यवस्थापक/प्रबन्धक, आचार्य श्री सोहनलाल जैन सामग्री भंडार- आ. श्री सो. " & जैन ग्रन्थमाला प्रकाशन को हार्दिक साधुवाद करना मैं अपना कर्त्तव्य मानता हूं क्योंकि इनके , सहयोग से ही यह कार्य सम्पन्न हुआ है। श्री दीवानचन्द जी जैन साढौरावालों ने -जो कि मेरी / दीक्षाभूमि के सुश्रावक हैं और जो समय-समय पर धार्मिक गतिविधियों में सहयोगी रहते हैंव इस प्रथम खण्ड के पूर्ण प्रकाशन के लिए सहयोग देकर श्रुतसाहित्य की सेवा की है। अन्त में मैं अपने गुरुमह गुरुदेव प्रवर्तक पं. रत्न श्री शुक्लचन्द्र जी म. सा. तथा गुरुदेव पं. श्री महेन्द्रकुमार जी म. के प्रति सश्रद्ध-सभक्ति कृतज्ञता एवं कृपा-वर्षण के लिए आभारी हूं। अम्बाला शहर (मुनि सुमनकुमार श्रमण') / जैन महावीर भवन (प्रव. उत्तरभारत) दिनाङ्क- 1 जनवरी 2010 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)ce 838
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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