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________________ Racetance 9090902090900900 222333333333333333333333333333333333333333333 नियुक्ति-गाथा-21 आदि, मध्य और अवसान में कुछ विशिष्ट पाठ होता है और शेष पाठ की पुनरावृत्ति अनेक बार होती cm है। इस शैली का प्रयोग प्रायः दृष्टिवाद में होता है। अगमिक की रचना शैली विसदृश होती है। " * आचारांग आदि कालिक सूत्र में इसी शैली का प्रयोग किया गया है। a (हरिभद्रीय वृत्तिः) सत्पदप्ररूपणादि मतिज्ञानवद् आयोज्यम् / प्रतिपादितं श्रुतज्ञानमर्थतः।साम्प्रतं , विषयद्वारेण निरूप्यते।तच्चतुर्विधम्-द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतो भावतश्च।तत्र द्रव्यतः श्रुतज्ञानी , सर्वद्रव्याणि जानीते, न तु पश्यति। एवं क्षेत्रादिष्वपि द्रष्टव्यम् / इदं पुनः श्रुतज्ञानं : सर्वातिशयरत्नसमुद्रकल्पम्, तथा प्रायो गुर्वायत्तत्वात् पराधीनं यतः, अतः विनेयानुग्रहार्थं यो यथा चास्य लाभः, तं तथा दर्शयन्नाह ___ (नियुक्तिः) आगमसत्यग्गहणं, जं बुद्धिगुणेहि अहिं दिढं। बिंति सुयनाणलंभं, तं पुलविसारया धीरा // 21 // [संस्कृतच्छायाः-आगमशास्त्रग्रहणं यद् बुद्धिगुणैः अष्टभिः निर्दिष्टम् ।बुवते श्रुतज्ञानलाभं तत् पूर्वविशारदाः धीराः।] ___(वृत्ति-हिन्दी-) श्रुत ज्ञान की सत्पदप्ररूपणा आदि का कथन मतिज्ञान की तरह कर c लेना चाहिए। इस प्रकार, अर्थतः श्रुतज्ञान की प्ररूपणा सम्पन्न हुई। अब श्रुत ज्ञान का c& विषय-द्वार (दृष्टि) से निरूपण किया जा रहा है। वह (श्रुत ज्ञान ग्राह्य विषय की दृष्टि से) चार क प्रकार का है- द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः और भावतः। इनमें श्रुतज्ञानी समस्त द्रव्यों को जानता है किन्तु देखता नहीं। इसी प्रकार क्षेत्रतः आदि में भी समझ लेना चाहिए। यह र & श्रुतज्ञान तो सर्वोत्कृष्ट रत्नसमुद्र जैसा है, और चूंकि यह प्रायः गुरुजनों के अधीन होने से पर-आश्रित होता है, अतः जिस रीति से और जो इसका लाभ है, उसे विनेय (शिष्य) जनों पर अनुग्रह करने की दृष्टि से स्पष्ट कर रहा हूं (21) a (नियुक्ति-अर्थ-) बुद्धि के आठ गुणों द्वारा जो आगम-शास्त्र का (अर्थतः) ग्रहण , ' होना बताया जाता है, उस (आगम-शास्त्र-ग्रहण) को ही 'पूर्व' ज्ञान-विशारद धीर (मुनि) : जनों ने 'श्रुतज्ञान की उपलब्धि' (रूप में) बताया है। 80@ca(r)(r)(r)(r)ce@@ce8082(r)ce@98 161 -
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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