________________ -RecemRRRRR 20902090209000 नियुक्ति-गाथा-20 (हरिभद्रीय वृत्तिः) उक्तमनक्षरश्रुतद्वारम्, इदानीं 'संज्ञिद्वारम्'।तत्र संज्ञीति कः शब्दार्थः?, संज्ञानं संज्ञा, . संज्ञाऽस्यास्तीति संज्ञी।सच त्रिविधः-दीर्घकालिकहेतुवाददृष्टिवादोपदेशाद्, यथा नन्यध्ययने : & तथैव द्रष्टव्यः। ततश्च संज्ञिनः श्रुतं संज्ञिश्रुतम्, तथा असंज्ञिनः श्रुतम् असंज्ञिश्रुतमिति।तथा 'सम्यश्रुतम्' अङ्गानङ्गप्रविष्ठम् आचारावश्यकादि।तथा मिथ्याश्रुतम्' पुराणरामायणभारतादि, ल सर्वमेव वा दर्शनपरिग्रहविशेषात् सम्यक्श्रुतमितरद्वा इति। तथा 'साद्यमनाचं सपर्यवसितमपर्यवसितं च' नयानुसारतोऽवसेयम् / तत्र " द्रव्यास्तिकनयादेशाद् अनाद्यपर्यवसितंच, नित्यत्वात्, अस्तिकायवत्।पर्यायास्तिकनयादेशात् सादि सपर्यवसितंच, अनित्यत्वात्, नारकादिपर्यायवत् / अथवा द्रव्यादिचतुष्टयात् साधनाद्यादि अवगन्तव्यम्, यथा नन्द्यध्ययने इति। (वृत्ति-हिन्दी-) अनक्षर श्रुत का निरूपण हुआ। अब ‘संज्ञी' द्वार का कथन करना , है। यहां 'संज्ञी' का शब्दिक अर्थ क्या है? संज्ञा यानी संज्ञान (विकसित ज्ञान)। 'संज्ञा' से सम्पन्न व्यक्ति संज्ञी' होता है। वह तीन प्रकार का है- दीर्घकालिक, हेतुवाद और दृष्टिवादोपदेश, 8 जैसा कि नन्दी अध्ययन में निरूपित है, वैसा ही (इनके स्वरूपादि को) समझ लेना चाहिए। तदनुसार संज्ञी का श्रुत ‘संज्ञीश्रुत' है और असंज्ञी का श्रुत 'असंज्ञी श्रुत' है। इसी तरह, 1 a अंगप्रविष्ट व अनंगप्रविष्ट (अंगबाह्य) आचारांग व आवश्यक सूत्र आदि 'सम्यक्श्रुत' हैं। " * पुराण, रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थ मिथ्याश्रुत हैं। अथवा (चाहे सम्यक् श्रुत हो या " मिथ्याश्रुत हो) सभी दर्शन-परिग्रह विशेष (दृष्टि की समीचीनता या असमीचीनता) के आधार , पर सम्यक्श्रुत या इतर (मिथ्याश्रुत) हो जाते हैं। 4 और सादि श्रुत, अनादिश्रुत, सपर्यवसित श्रुत, अपर्यवसित श्रुत -इन्हें नयों के , अनुसार समझ लेना चाहिए। (जैसे-) द्रव्यास्तिक नय की अपेक्षा से जिस प्रकार 'अस्तिकाय' नित्य है, उसी प्रकार श्रुत भी अनादि व अपर्यवसित (अनन्त) है। किन्तु पर्यायास्तिक नय की अपेक्षा से नरकादि पर्याय की तरह अनित्य होने से श्रुत सादि व सपर्यवसित (सान्त) है। ca अथवा द्रव्यादिचतुष्टय (द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव -इन) के आधार पर (भी) श्रुत को, जैसा कि नन्दी अध्ययन में प्रतिपादित है, सादि या अनादि समझना चाहिए। -222222322323222333333333333333333333333333333 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 155