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________________ -acacacacaca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 00000000 222222222222222222222222222222222222222222222 / व्यञ्जनाक्षर- अकारादि का उच्चारण व्यञ्जनाक्षर है। इससे अर्थ की अभिव्यञ्जना होती है।। ca इसलिए इसका नाम व्यञ्जनाक्षर है। लब्ध्यक्षर- इन्द्रिय और मन इस उभयात्मक विज्ञान से अक्षर का लाभ होता है, उसकी / संज्ञा लब्धि अक्षर है। हरिभद्र और मलयगिरि ने श्रुतज्ञानावरण का क्षयोपशम और श्रुतज्ञान का . उपयोग-इन दोनों को लब्धि अक्षर बतलाया है। मलयगिरि ने प्रश्न उपस्थित किया है कि लब्धि अक्षर अक्षरानुविद्ध ज्ञान है, इसलिए वह समनस्क जीवों के ही हो सकता है। अमनस्क जीव अक्षर को पढ़ नहीं सकते और उसके उच्चारण को समझ नहीं सकते। उनके लब्धि अक्षर संभव नहीं है। इस प्रश्न पर समाधान प्रस्तुत किया हैca आ. जिनभद्र गणी ने / उन्होंने विशेषावश्यक भाष्य में पृथ्वी आदि एकेन्द्रिय जीवों में भावश्रुत स्वीकार किया जो शब्द और अर्थ की पर्यालोचना से होने वाला विज्ञान है। शब्दार्थ का पर्यालोचन अक्षर के बिना नहीं हो सकता। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि अमनस्क जीवों के अव्यक्त अक्षर लाभ होता है। उससे अमनस्क जीवों में अक्षरानुषक्त श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है। इस तथ्य की पुष्टि के लिए आहार आदि की अभिलाषा की चर्चा की गई है। अभिलाषा का अर्थ है 'मुझे वह वस्तु मिले' यह अभिलाषा अक्षरानुविद्ध होती है इसलिए एकेन्द्रिय आदि अमनस्क जीवों में अव्यक्त अक्षर लब्धि , अवश्य स्वीकार्य है। प्रज्ञापना (पद-11) में प्रतिपादित भाषा विज्ञान और आधुनिक विज्ञान के प्रकंपन की दृष्टि से " a 'लब्धि अक्षर' पर नयी दृष्टि से विचार किया जा सकता है। एकेन्द्रिय आदि अमनस्क जीव ध्वनि के , प्रकंपनों को पकड़ लेते हैं और उन्हें अव्यक्त अक्षर के रूप में बदल देते है। इसे फेक्स मशीन की : प्रक्रिया से भी समझा जा सकता है। एकेन्द्रिय जीवों में भाषा नहीं होती। वे अपनी बात दूसरों तक, प्रकंपनों के माध्यम से पहुंचाते हैं। द्वीन्द्रिय जीवों से भाषा का प्रारम्भ होता है। त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय " और पञ्चेन्द्रिय सब भाषा का प्रयोग करते हैं। इनकी भाषा अक्षरात्मक और अनक्षरात्मक, दोनों " प्रकार की होती है। अक्षर और लिपि की व्यवस्था मनुष्य ने की। कीट, पतंगों और पशु पक्षियों के . पास अक्षर और लिपि की व्यवस्था नहीं है।] धवला में अक्षर के तीन भेद इस प्रकार हैं-1.लब्धि अक्षर-ज्ञानावरण का क्षायोपशमिक भाव। 2. निवृत्ति अक्षर- अक्षर का उच्चारण-इसकी तुलना व्यञ्जनाक्षर से होती है। निर्वृत्ति अक्षर के , दो प्रकार है- व्यक्त और अव्यक्त। समनस्क पर्याप्त पञ्चेन्द्रिय का अक्षर व्यक्त होता है। अव्यक्त अक्षर " द्वीन्द्रिय से लेकर अमनस्क पर्याप्त पञ्चेन्द्रिय तक होता है। (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 152
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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