________________ RecemRecence හ හ හ හ හ හ හ හ හ नियुक्ति गाथा-19 प्रश्न पूछे बिना, तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित अर्थ, मुक्त व्याकरण (व्याख्यान) से निष्पन्न अंगबाह्य आगम c& है। आ. पूज्यपाद के अनुसार (उत्तरवर्ती) आचार्यों द्वारा रचित ग्रन्थ अंगबाह्य (अनंग) आगम हैं। a श्रुतज्ञान के भेदों की संख्या-नन्दीसूत्र (चतुर्थ प्रकरण, परोक्ष श्रुत ज्ञान) में इन्हीं चौदह भेदों से & का निरूपण किया गया है। किन्तु परवर्ती ग्रन्थों-जैसे तत्त्वार्थसूत्र में श्रुतज्ञान के दो, अनेक व बारह . & भेद किये गये हैं। (द्र. तत्त्वार्थसूत्र, 1/2, श्रुतं मतिपूर्वं व्यनेकद्वादशभेदम्)। कर्मग्रन्थ में श्रुतज्ञान के . चौदह भेदों के साथ-साथ बीस प्रकार का भी निरूपण किया है (कर्मग्रन्थ, भाग-1, गाथा-6-7)। इसी बीस भेदों की परम्परा का दर्शन षट्खण्डागम व गोम्मटसार (दिगम्बर ग्रन्थों) में भी होता है। अक्षरश्रुत- जिसका कभी क्षरण नहीं होता वह अक्षर है। चूंकि ज्ञान अनुपयोग अवस्था में , CM (विषय के प्रति दत्तचित्तता न होने पर) भी प्रच्युत नहीं होता, इसलिए वह अक्षर है। जिनभद्रगणि ने नयदृष्टि से ज्ञान के क्षर और अक्षर इस उभयात्मक स्वरूप की चर्चा की है। नैगम आदि अविशुद्ध & नयों की दृष्टि में ज्ञान अक्षर है, उसका प्रच्यवन नहीं होता। ऋजुसूत्र आदि नयों की दृष्टि में ज्ञान क्षर , & है। अनुपयोग अवस्था में उसका प्रच्यवन होता है। घट आदि अभिलाप्य पदार्थ द्रव्यार्थिक दृष्टि से नित्य हैं. अक्षर यार्थिक दृष्टि से अनित्य हैं,क्षर हैं। यद्यपि सकल ज्ञान अक्षर है फिर भी रूढ़िवशात् वर्ण को अक्षर कहा जाता है। कार ने यहां अक्षर के तीन भेद किए हैं- 1. संज्ञाक्षर 2. व्यअनाक्षर 3. लब्ब्यक्षर। & नन्दी-चूर्णिकार ने अक्षर के तीन प्रकार भिन्न रूप से बतलाए है- 1. ज्ञानाक्षर, 2. अभिलाषाक्षर, 3. 2 वर्णाक्षर / भाषा विज्ञान सम्मत शब्द की तीन प्रकृतियों से इनकी तुलना की जा सकती है 1. चक्षुराह्य प्रकृति- लिपिशास्त्रगत रेखाएं। 2. श्रोत्र ग्राह्य प्रकृति- उच्चारणशारत्रगत है ध्वनियां / 3. बुद्धि ग्राह्य प्रकृति- वस्तु का अवधारक अर्थ। संज्ञाक्षर-संज्ञा शब्द के अनेक अर्थ होते हैं। यहां संज्ञा का अर्थ संकेत है। अक्षर के जिस संस्थान अथवा आकृति मे जिस अर्थ का संकेत स्थापित किया जाता है, वह अक्षर संकेत के अनुसार, ही अर्थ बोध कराता है। इस संज्ञाक्षर के आधार पर ब्राह्मी आदि सभी लिपियों का विकास हुआ है। 8 नन्दी-चूर्णिकार ने इसे उदाहरण के द्वारा समझाया है। वृत्त और घट की आकृति वाले वर्ण को देखने , स पर 'ठ' की संज्ञा उत्पन्न हो जाती है। मलयगिरि ने णकार और ढकार की आकृति का निदर्शन , & प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार णकार चूल्हे की आकृति वाला और ढकार कुत्ते की वक्रीभूत पूंछ की " | आकृति वाला होता है। मलधारी हेमचंद्र के अनुसार टकार अर्द्धचंद्र की आकृति वाला होता है। 333333333333333333333333333333333333333333333 / 88cIO0BR@neck@BROn@@ce@@ 151