SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -anenance 000000000 222222222222222333333333333333333333333333333 नियुक्ति-माथा-19 'श्रुत' शब्द का निदर्शन करणीय है (-ऐसा समझना चाहिए)। इनमें 'अक्षर' से क्या तात्पर्य * अभिहित है? संचलन (क्षरण क्षति, नाश) अर्थ में 'क्षर' धातु है। जो क्षरित नहीं होता, वह 4 'अक्षर' होता है, वह ज्ञान या चेतना (ही 'अक्षर') है- यह 'अक्षर' शब्द का वाच्य अर्थ है। , 6 चूंकि वह अनुपयोग (उपयोगरहित अवस्था) में भी प्रच्युत नहीं होता, इसलिए वह (चेतना या , ज्ञान) 'अक्षर' है, अथवा जो पदार्थों का क्षरण नहीं करता और न ही क्षीण होता है, वह 1 ce 'अक्षर' है। वह संक्षेप में तीन प्रकार का होता है-संज्ञाक्षर, व्यञ्जनाक्षर और लब्ध्यक्षर। इनमें संज्ञाक्षर (से तात्पर्य) है- अक्षर सम्बन्धी विशेष आकार, जैसे घटिका (छोटा घड़ा) के है & आकार वाला धकार, और कुरुण्टिका (पीला सदाबहार या कटसरैया फूल) के आकार ? वाला चकार, आदि-आदि। वह संज्ञाक्षर (भी) ब्राह्मी आदि (विविध) लिपियों के अनुरूप & अनेक प्रकार का होता है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) तथा व्यानाक्षरम्, व्यज्यतेऽनेनार्यः प्रदीपेनेव घट इति व्यञ्जनम्, व्यञ्जनम् च तदक्षरं ca चेति व्यञ्जनाक्षरम्, तच्चेह सर्वमेव भाष्यमाणं अकारादि हकारान्तम्, अर्थाभिव्यजकत्वाच्छब्दस्य। तथा योऽक्षरोपलम्भः तत् लब्यक्षरम्, तच्च ज्ञानम् इन्द्रियमनोनिमित्तं श्रुतग्रन्थानुसारि , तदावरणक्षयोपशमो वा। अत्र संज्ञाक्षरं व्यानाक्षरं च द्रव्याक्षरमुक्तम् , , श्रुतज्ञानाख्यभावाक्षरकारणत्वात्।लब्यक्षरं तु भावाक्षरम्, विज्ञानात्मकत्वादिति। तत्र, अक्षरशुतमिति अक्षरात्मकं श्रुतं अकारचुतम्, द्रव्याकराण्यधिकृत्य, अथवा अक्षरंच तत् श्रुतं च / अक्षारश्रुतम्, भावाक्षरमजीकृत्य९॥ . (वृत्ति-हिन्दी-) व्यअनाक्षर में दो पद हैं- व्यञ्जन और अक्षर। जिस प्रकार प्रदीप द्वारा घट अभिव्यक्त होता है, उसी प्रकार जिसके द्वारा पदार्थ व्यक्त होता है। वह 'व्यञ्जन' होता है, व्यञ्जन (स्वरूप वाला) जो अक्षर, वह 'व्यञ्जनाक्षर' है। अकार से लेकर हकार तक , & भाषित होने वाले समग्र शब्दादि व्यञ्जनाक्षर हैं, क्योंकि शब्द अर्थों के अभिव्यञ्जक माने जाते " व हैं। जो अक्षर की उपलब्धि है, वह लब्ध्यक्षर है। वह इन्द्रिय व मन के निमित्त से होने वाला , ज्ञान या श्रुत ग्रन्थ का अनुसरण करने वाला श्रुतज्ञानावरण-क्षयोपशम (ही लब्ध्यक्षर) है। , इन (तीनों) में संज्ञाक्षर और व्यञ्जनाक्षर -ये द्रव्याक्षर कहे गये हैं, क्योंकि ये श्रुतज्ञान रूप - @nce@78c98c0000000000000 149
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy