________________ aaaaaacaa श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) Monommo(हरिभद्रीय वृत्तिः) साम्प्रतं चतुर्दशविधश्रुतनिक्षेपस्वरूपोपदर्शनायाह 222222222222222222222222222222222222222222223 अक्खरसण्णी सम्मं,साईयं खलु सपज्जवसिअंच। गमियं अंगपविलु, सत्तवि एएसपडिवक्खा // 19 // [संस्कृतछायाः-अक्षर संल्लि सम्यक् सादिकं खानु सपर्यवसितं चाममिकमजप्रविष्टं सप्ताप्यते सप्रतिपक्षाः1] (वृत्ति-हिन्दी-) अब चौदह भेदों वाले श्रुत-निक्षेप का स्वरूप प्रदर्शित कर रहे हैं __ (19) (नियुक्ति-अर्थ-) (1) अक्षर (श्रुत), (2) संन्नि (श्रुत), (3) सम्यक् (श्रुत), (4)सादि / a (श्रुत), (5) सपर्यवसित (श्रुत), (6) गमिक (श्रुत), (7) अंगप्रविष्ट (श्रुत) -ये सात, तथा , & इनके प्रतिपक्षी (विरुद्ध), (8) अनक्षर (श्रुत), (7) असंनि (श्रुत), (10) असम्यक् (श्रुत), , 14 (11) अनादि (श्रुत), (12) अपर्यवसित (श्रुत), (13) अगमिक (श्रुत), (14) अनंग प्रविष्ट / 4 (अंगबाह्य श्रुत) -ये सात (तथा कुल मिला कर श्रुत ज्ञान के चौदह) भेद होते हैं। a (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) तत्र अक्षरशुतद्वारम् ।इह सूचनात्सूत्रम्' झतिकृत्वा सर्वद्वारेषु श्रुतशब्दो , द्रष्टव्य इति।तत्र अक्षरमिति किमुक्तं भवति? -'कर संचलने' न भरतीत्यक्षरम्, तच्च ज्ञानं , चेतनेत्यर्थः, न यस्मादिदमनुपयोगेऽपि प्रच्यवत इति भावार्थः। इत्थंभूतभावाक्षरकारणत्वाद् / 4 अकारादिकमप्यक्षरमभिधीयते।अथवा अर्थान् करति बच क्षीयते इत्यक्षारम्। तच्च समासतस्त्रिविधम्।तद्यथा-संज्ञाकारं व्यानाकरं लब्यक्षरं चेति।संज्ञाक्षरं तत्र , 4 अक्षराकारविशेषः, यथा घटिकासंस्थानो पकारः,कुरुण्टिकासंस्थानश्चकार इत्यादि, तच्च , ब्राह्मयादिलिपीविधानादनेकविधम्। (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) (इन चौदह निक्षपों में प्रथम) 'अक्षरश्रुत' द्वार है। सूत्र 1 ca (रूप ग्रन्थ) सूचन करता है (सूचन करने के कारण ही 'सूत्र' कहा जाता है, अर्थात् सूत्र " कुछ तो कहता है और कुछ का संकेत मात्र करता है) इसलिए सभी (सम्भावित) द्वारों में . - - 148 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)9890(r)(r)(r)