________________ | RRRRRRRRo... नियुक्ति-गाथा-18 .000000000 33333333333333333333333333333333333333333 (हरिभद्रीय वृत्तिः) कथं न शक्तिः?, इह ये श्रुतग्रन्थानुसारिणो मतिविशेषास्तेऽपि श्रुतमिति प्रतिपादिताः। " उक्तंच-"तेऽविय मईविसेसे, सुयणाणभंतरे जाण" (तानपिच मतिविशेषान् श्रुतज्ञानाभ्यन्तरे " जानीहि)।ताँश्चोत्कृष्टतः श्रुतधरोऽपि अभिलाप्यानपि सर्वान् न भाषते, तेषामनन्तत्वात् आयुषः / a परिमितत्वात् वाचः क्रमवृत्तित्वाच्चेति, अतोऽशक्तिः। ततः चतुर्दशविधनिक्षेपम्' ।निक्षेपणं निक्षेपो-नामादिविन्यासः।चतुर्दशविधश्चासौ , र निक्षेपश्चेति विग्रहस्तं 'श्रुतज्ञाने' श्रुतज्ञानविषयम्, चशब्दात् श्रुताज्ञानविषयं च।अपिशब्दात् / उभयविषयं च। तत्र श्रुतज्ञानं सम्यक्श्रुते, श्रुताज्ञाने असंज्ञिमिथ्याश्रुते, उभयश्रुते " व दर्शनविशेषपरिग्रहात् अक्षरानक्षरश्रुते इति, वक्ष्ये' अभिधास्ये इति गाथार्थः // 18 // (वृत्ति-हिन्दी-) (उक्त) सामर्थ्य क्यों नहीं है? (उत्तर-) यहां श्रुत-ग्रन्थ के अनुसारी , : (अर्थात् इस ग्रन्थ में प्रतिपादित श्रुत-सम्बन्धी) जो मति-विशेष (मति-भेद) हैं, उन्हें भी 'श्रुत' / * कहा गया है। कहा भी है- उन मति-विशेषों को भी श्रुतज्ञान के अन्तर्गत जानें। उन " << मतिविशेषों में जो भी उत्कृष्टतः अभिलाप्य हैं, उन सभी को श्रुतधर भी नहीं कह पाता है, . व क्योंकि वे अनन्त होते हैं और (वक्ता की) आयु परिमित होती है, और वाणी क्रमशः ही प्रवृत्त " ल होती है (अर्थात् प्रत्येक को क्रमशः ही कह पाती है), इसलिए (मेरी) सामर्थ्य नहीं है। " अतः चतुर्दशविध निक्षेपों को कहूंगा / निक्षेप यानी निक्षेपक अर्थात् 'नाम' (स्थापना, , द्रव्य, भाव) आदि रूप से न्यास करना / चतुर्दशविध और (वही) निक्षेप -इस प्रकार , ca (कर्मधारय) समास है। उन श्रुत-ज्ञान विषयक चौदह निक्षेपों को कहूंगा। 'च' शब्द से यह " ca संकेतित है कि श्रुत-अज्ञान विषयक निक्षेपों को भी कहूंगा। 'अपि' (भी) शब्द से यह सूचित " a किया गया है कि दोनों (श्रुत ज्ञान व श्रुत-अज्ञान) के निक्षेपों का कथन करूंगा। इनमें - & श्रुतज्ञान से 'सम्यक्श्रुत', श्रुत-अज्ञान से असंज्ञी मिथ्याश्रुत, और उभय से दर्शन-विशेष व अर्थात् अक्षरश्रुत व अनक्षरश्रुत का ग्रहण होता है। 'वक्ष्ये' अर्थात् कहूंगा / यह गाथा का अर्थ " << पूर्ण हुआ 18 // (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)00000000 147