________________ -RRRRRRRE 209099999999999 222222222222222222222233333333333333333333333 नियुक्ति गाथा-16 / (हरिभद्रीय वृत्तिः) साम्प्रतं यथाव्यावर्णितमतिभेदसंख्याप्रदर्शनद्वारेणोपसंहारमाह (नियुक्तिः) आभिणिबोहियनाणे, अट्ठावीसइ हवन्ति पयडीओ // 15 // 2 // [संस्कृतच्छायाः-आभिनिबोधिकन्ज्ञाने अष्टाविंशतिः प्रकृतयो भवन्ति।] (वृत्ति-हिन्दी-) अब, पूर्व-प्रतिपादित मतिज्ञान के भेदों की संख्या बता कर उपसंहार , के रूप में (आचार्य नियुक्तिकार) कह रहे हैं (152) (नियुक्ति-अर्थ-) आभिनिबोधिक ज्ञान की (कुल) प्रकृतियां अट्ठाईस हैं। (हरिभद्रीय वृत्तिः) अस्य गमनिका- 'आभिनिबोधिकज्ञाने अष्टाविंशतिः भवन्ति प्रकृतयः' ।प्रकृतयो भेदा & इत्यनन्तरम् / कथम्?, इह व्यञ्जनावग्रहः चतुर्विधः, तस्य मनोनयनवर्जेन्द्रियसंभवात्। & अर्थावग्रहस्तु षोढा, तस्य सर्वेन्द्रियेषु संभवात्। एवं ईहावायधारणा अपि प्रत्येकं षड्भेदा एव . मन्तव्या इति। एवं संकलिता अष्टाविंशतिर्भेदा भवन्ति। व आह-प्राग् अवग्रहादिनिरूपणायाम् 'अत्थाणं ऊगहणं' इत्यादावेताः प्रकृतयः प्रदर्शिता & एव, किमिति पुनः प्रदर्श्यन्ते?, उच्यते, तत्र सूत्रे संख्यानियमेन नोक्ताः, इह तु संख्यानियमेन प्रतिपादनादविरोध इति। (वृत्ति-हिन्दी-) इस (उपसंहार रूप गाथार्द्धभाग) का अर्थ है- आभिनिबोधिक >> ca ज्ञान में अट्ठाईस प्रकृतियां होती हैं। प्रकृति कहें या भेद कहें- एक ही अर्थ (तात्पर्य) है। " a (प्रश्न-) कैसे? (अर्थात् इनके भेदों की संख्या अट्ठाईस ही क्यों हैं?) (उत्तर : वह इस प्रकार से है-) इस मतिज्ञान में व्यञ्जनावग्रह चार प्रकार का होता है, क्योंकि यह मन व नेत्र -इन दो को छोड़कर अन्य इन्द्रियों से (शेष चार इन्द्रियों-श्रोत्र, रसना, घ्राण, स्पर्शनेन्द्रिय -द्वारा) : होता है। अर्थावग्रह छः प्रकार का होता है, क्योंकि सभी इन्द्रियों (पांच इन्द्रियों व छठे // अनिन्द्रिय मन) से होता है। इसी प्रकार, ईहा, अवाय, धारणा -इनमें भी प्रत्येक के छः छः / / भेद होते ही हैं। अतः सबको जोड़ने पर कुल अट्ठाईस भेद हो जाते हैं। 80@ca@ @ @ @ce@ @ce@ @ @ @ @ 139