________________ . 8 8 8 8 8 8 3333333333333 33333333333333333333333333333333 -ce caca ca cace ca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) Omnman प्रदेशों को ग्रहण करने के बारे में किन्हीं-किन्हीं आचार्यों का मत है कि लोकाकाश के जिन & प्रदेशों में मरण करता है, वे सभी प्रदेश ग्रहण किये जाते हैं, उनका मध्यवर्ती कोई विवक्षित प्रदेश 1 ca ग्रहण नहीं किया जाता है। c(हरिभद्रीय वृत्तिः) ___'भागः' इति द्वारम्।तत्र मतिज्ञानिनःशेषज्ञानिनामज्ञानिनांचानन्तभागे वर्तन्ते इति। र 'भावद्वारम्' इदानीम् / तत्र मतिज्ञानिनःक्षायोपशमिके भावे वर्तन्ते, मत्यादिज्ञानचतुष्टयस्य क्षायोपशमिकत्वात् / तथा 'अल्पबहुत्वद्वारम्'।तत्राभिनिबोधिकज्ञानिनां प्रतिपद्यमानव पूर्वप्रतिपन्नापेक्षया अल्पबहुत्वविभागोऽयमिति।तत्र सद्भावे सति सर्वस्तोकाः प्रतिपद्यमानकाः, पूर्वप्रतिपन्नास्तु जघन्यपदिनस्तेभ्योऽसंख्येयगुणाः, तथोत्कृष्टपदिनस्तु एतेभ्योऽपि विशेषाधिका : & इति गाथावयवार्थः // 13-15 // (वृत्ति-हिन्दी-) (6) 'भाग' द्वार का निरूपण इस प्रकार है- मतिज्ञानी शेष ज्ञानियों , व अज्ञानी जीवों के अनन्तवें भाग में होते हैं। (7) अब 'भाव' द्वार का निरूपण कर रहे हैंC. मतिज्ञानी क्षायोपशमिक भाव में स्थित होते हैं, क्योंकि मति आदि चारों ज्ञान क्षायोपशमिक ल हैं। (8) अल्पबहुत्व द्वार का निरूपण इस प्रकार है- आभिनिबोधिक ज्ञानियों में 'प्रतिपद्यमान' व 'पूर्वप्रतिपन्न' को दृष्टि में रखकर उनका अल्पबहुत्व-विभाग यहां निरूपित किया जाता है। ca वहां सद्भाव की दृष्टि से सबसे कम ‘प्रतिपद्यमान' होते हैं। जघन्य पूर्वप्रतिपन्न उन & (प्रतिपद्यमानों) की तुलना में असंख्येय गुने हैं, उत्कृष्टपदी पूर्वप्रतिपन्न तो उनसे भी विशेष & रूप से अधिक हैं। यह गाथा का अवयवार्थ (प्रत्येक पद के अनुसार अर्थ) हुआ ||13-15 // विशेषार्थ२ मतिज्ञान क्षायोपशममिक भाव है। चूंकि मतिज्ञानावरण कर्म के उदीर्ण, क्षीण होने पर, या ca अनुदीर्ण हो तो उपशान्त होने पर मतिज्ञान की उत्पत्ति होती है, इसलिए क्षायोपशमिक भाव में ही वह मतिज्ञान है, औदयिक व क्षायिक आदि भावों में नहीं होता है। मतिज्ञानी अन्य ज्ञानियों की CM तुलना में थोड़े हैं क्योंकि सिद्ध, केवली आदि जीवों की संख्या अनन्त होती है। अल्पबहुत्व द्वार में चूंकि 'प्रतिपद्यमान' का सद्भाव विवक्षित एक समय मात्र से सम्बन्धित * होता है, अतः वे सबसे कम हैं। उनसे 'पूर्वप्रतिपन्न' अपेक्षाकृत असंख्यात गुने होते हैं, क्योंकि वे चिरकाल से (दीर्घकालपरम्परा से) जुड़े होते हैं। (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) . / 138