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________________ GRRRRRRRRR नियुक्ति-गाथा-13-15 929999999999990 223222333333333333333333333333333333333323222 एक जीव अपने मरण के द्वारा लोकाकाश के समस्त प्रदेशों, उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल के & समय तथा अनुभाग बंध के स्थानों को जिस किसी भी प्रकार (बिना क्रम के) से और अनुक्रम से , 4 स्पर्श कर लेता है तब क्रमशः बादर और सूक्ष्म क्षेत्रादि पुद्गल परावर्त होते हैं। / व क्षेत्रपुद्गल परावर्त-कोई एक जीव भ्रमण करता हुआ आकाश के किसी एक प्रदेश में मरा और वही जीव पुनः आकाश के किसी दूसरे प्रदेश में मरा, तीसरे, चौथे आदि प्रदेशों में मरा / इस * प्रकार जब वह लोकाकाश के समस्त प्रदेशों में मर चुकता है तो उतने काल को बादर क्षेत्रपुद्गल परावर्त कहते है। बादर क्षेत्रपुदगल परावर्त में क्रम-अक्रम आदि किसी भी प्रकार से समस्त आकाश ce प्रदेशों को स्पर्श कर लेना ही पर्याप्त माना जाता है। सूक्ष्म क्षेत्रपुद्गल परावर्त में भी आकाश प्रदेशों को स्पर्श किया जाता है, लेकिन उसकी विशेषता इस प्रकार है कि कोई जीव भ्रमण करता-करता आकाश के किसी एक प्रदेश में मरण करके , ce पुनः उस प्रदेश के समीपवर्ती दूसरे प्रदेश में मरण करता है, पुनः उसके निकटवर्ती तीसरे प्रदेश में 2 ca मरण करता है। इस प्रकार अनन्तर-अनन्तर क्रम से प्रदेश में मरण करते-करते जब समस्त " & लोकाकाश के प्रदेशों में मरण कर लेता है, तब वह सूक्ष्म क्षेत्रपुद्गल परावर्त कहलाता है। ... उक्त कथन का सारांश और बादर व सूक्ष्म क्षेत्रपुद्गल परावर्त में अन्तर यह है कि बादर में , ca तो क्रम का विचार नहीं किया जाता है, उसमें व्यवहित प्रदेश में मरण करने पर यदि वह प्रदेश पूर्व से & स्पृष्ट नहीं है तो उसका ग्रहण होता है, यानी वहां क्रम से या बिना क्रम से समस्त प्रदेशों में मरण कर . लेना ही पर्याप्त समझा जाता है किन्तु सूक्ष्म में समस्त प्रदेशों में क्रम से ही मरण करना चाहिए और . अक्रम से जिन प्रदेशों में मरण किया जाता है अथवा पूर्व मरणस्थान में पुनः जन्म लेकर मरण किया जाता है तो उनकी गणना नहीं की जाती है। इससे यह स्पष्ट है कि बादर की अपेक्षा सूक्ष्म क्षेत्रपुद्गल परावर्त में समय अधिक लगता है। बादर का समय कम और सूक्ष्म का समय अधिक है। सूक्ष्म क्षेत्रपुद्गल परावर्त के संबन्ध में एक बात और जानना चाहिए कि एक जीव की & जघन्य अवगाहना लोक के असंख्यातवें भाग बतलाई है, जिससे एक जीव यद्यपि लोकाकाश के एक " & प्रदेश में नहीं रह सकता, तथापि किसी एक देश में मरण करने पर उस देश का कोई एक प्रदेश 7 ca आधार मान लिया जाता है, जिससे यदि उस विवक्षित प्रदेश से दूरवर्ती किन्हीं प्रदेशों में मरण होता " है तो वे गणना में नहीं लिये जाते हैं किन्तु अनन्तकाल बीत जाने पर जब कभी विवक्षित प्रदेश के अनन्तर का जो प्रदेश है, उसमें मरण करता है तो वह गणना में लिया जाता है। - @ @ @ @ @@@ @ @ @ @ @@ne 137
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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