________________ - 333333333322222222222222222222222222233333333 -accacaca cace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 00900202 जिस कर्म के उदय से जीव बादर काय की प्राप्ति करता है उसको बादर नामकर्म कहते हैं। ca अन्य को बाधा पहुंचाने वाले शरीर का निर्वर्तक (निर्माण-कर्ता) बादर नामकर्म है। आंखों से दिखलाई दे, आंखों से देखा जा सके, चक्षुइन्द्रिय का विषय हो- यही बादर का अर्थ नहीं है। क्योंकि एक-एक बादर काय वाले पृथ्वीकाय आदि का शरीर बादर शरीर को प्राप्त करने पर भी आंखों से , & देखा नहीं जा सकता है। किन्तु बादर नामकर्म पृथ्वीकाय आदि जीवों में एक प्रकार के बादर परिणाम , 4 को उत्पन्न करता है जिससे बादर पृथ्वीकाय आदि के जीवों के शरीर समुदाय में एक प्रकार की अभिव्यक्ति प्रगट हो जाती है और उससे वे शरीर दृष्टिगोचर होते हैं। बादर नामकर्म के कारण ही बादर जीवों का मूर्त द्रव्यों के साथ घात-प्रतिघात आदि होता है। सूक्ष्म शरीर से असंख्यात गुणी अधिक अवगाहना वाले शरीर को बादर और उस शरीर से 4 युक्त जीवों को उपचार से बादर जीव अथवा बादर शरीर से असंख्यात गुणी हीन अवंगाहना वाले , & शरीर को सूक्ष्म और उस शरीर से युक्त जीवों को उपचार से सूक्ष्म जीव कहते हैं तो इस प्रकार की . & कल्पना करना भी युक्तिसंगत नहीं है। क्योंकि सूक्ष्म शरीर से भी असंख्यात गुण हीन अवगाहना वाले और बादर नामकर्म के उदय से उत्पन्न हुए बादर शरीर की उपलब्धि होती है। अतः अवगाहना ce की अपेक्षा सूक्ष्म और बादर का भेद नहीं किया जा सकता है। ca इसी प्रकार प्रदेशों की अल्पाधिकता की अपेक्षा भी सूक्ष्म और बादर भेद नहीं हैं क्योंकि 4 तैजस और कार्मण शरीर अनन्त प्रदेशी हैं किन्तु उनका अति सघन और सूक्ष्म परिणमन होने से - & इन्द्रियों द्वारा ग्रहण नहीं होता है। यह भी नियम नहीं है कि स्थूल (बादर) बहुत प्रदेश संख्या वाला , होना चाहिये, क्योंकि स्थूल एरण्ड वृक्ष से सूक्ष्म लोहे के गोले की एकरूपता नहीं बन सकती है। . एरण्ड का वृक्ष, रुई का ढेर स्थूल दृष्टि से अधिक स्थान को घेरता है और लोहे का पिण्ड कम स्थान, ce को, लेकिन उनके परमाणुओं की गिनती की जाये तो सम्भव है लोहे के पिण्ड मैं एरन्ड के वृक्ष या " रुई के ढेर से भी संख्यात, असंख्यात गुने अधिक परमाणु हों। अतः प्रदेशापेक्षया भी संसारी जीवों के . शरीर के लिये सूक्ष्म और बादर का विचार नहीं किया जा सकता है। अतः निष्कर्ष यह है कि समस्त / संसारी जीवों के शरीर में जो बादरत्व और सूक्ष्मत्व भेद माना जाता है, वह बादर और सूक्ष्म , & नामकर्म जन्य है। एकेन्द्रिय जीवों के सूक्ष्म और बादर, यह दो भेद मानने के पूर्वोक्त कथन का सारांश यह है ? a कि सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव वे हैं जिन्में सूक्ष्म नामकर्म का उदय है। इनका शरीर इतना सूक्ष्मतम होता . * है कि यदि वे असंख्यात, अनन्त भी एकत्रित हो जायें तब भी दृष्टिगोचर नहीं हो पाते हैं। ऐसे जीव सम्पूर्ण लोके में व्याप्त हैं। ज्ञान के द्वारा जानने योग्य होने पर भी वाचनिक व्यवहार के वे अयोग्य है। (r)(r)cr@@@@ce(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 126