________________ -RRRRRRRR 9999999999999 Fuc tuc is 333333333333333333332232233333333333333333333 नियुक्ति गाथा-13-15 होते हैं, प्रपिद्यमान नहीं होते, क्योंकि लब्धि रूप मतिज्ञान की दर्शनोपयोग में उत्पत्ति निषिद्ध है, ca इसका कारण यह है कि 'साकारोपयोगयुक्त के सभी लब्धियां उत्पन्न होती हैं' -ऐसा शास्त्रीय वचन , क है। 'केवल दर्शन' के धारकों में तो दोनों -पूर्वप्रतिपन्न व प्रतिपद्यमान- का अभाव है। (संयम मार्गणा-) सावध योगों- पापजनक प्रवृत्तियों से उपरत होना, अथवा पापजनक व्यापार-आरम्भ, समारम्भ से आत्मा को जिसके द्वारा संयमित-नियमित किया जाता है, रोका जाता & है, वह 'संयम' कहलाता है। संयम-मार्गणा के सात भेद होते हैं- सामायिक, छेदोपस्थापनीय परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसांपराय, यथाख्यात, देशविरति व अविरति। इनके स्वरूप आदि के लिए अन्य शास्त्र द्रष्टव्य हैं। संयत जीव आभिनिबोधिक ज्ञान की दृष्टि से पूर्वप्रतिपन्न ही होते हैं, प्रतिपद्यमान का सद्भाव भजना (विकल्प) से कथनीय है। इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है- संयत जीव सम्यक्त्वसहित ही & होता है और सम्यक्त्व लाभ होते ही (होने के बाद) मतिज्ञान की दृष्टि से वह 'पूर्वप्रतिपन्न हो जाता है, . किन्तु 'प्रतिपद्यमान' की भजना (सद्भाव या असद्भाव) कैसे संगत होती है? समाधान यह है कि आवश्यक चूर्णि में कहा गया है- सम्यक्त्वविहीन चारित्र नहीं होता, किन्तु दर्शन की भजना है a (नास्ति चारित्रं सम्यक्त्व-विहीनम्, दर्शनं तु भजनीयम्)। तथा यह भी कहा गया है कि सम्यक्त्व व , & चारित्र एक साथ भी हो सकते हैं, और पूर्व में सम्यक्त्व और बाद में चारित्र का होना- यह भी . सम्भव है (सम्यक्त्वचारित्रे युगपत्, पूर्वं च सम्यक्त्वम्)। तो जब अतिशय विशुद्धि के कारण सम्यक्त्व व चारित्र की युगपत् प्राप्ति होती है, तब संयम प्रतिपद्यमान होता है। सम्यक्त्व व चारित्र की युगपत् प्राप्ति न हो, पूर्व में सम्यक्त्व होकर बाद में चारित्र की प्राप्ति हो तो संयत जीवों में मतिज्ञान के " ca प्रतिपद्यमान का अभाव है। यही प्रतिपद्यमान के सद्भाव की भजना का स्पष्टीकरण है। (द्र. विशेषा. भाष्य, गा. 426 पर शिष्यहिता) 'उपयोग' जीव का लक्षण है। इसके दर्शन व ज्ञान -ये दो भेद हैं। दर्शन अनाकारोपयोग है , और ज्ञान साकारोपयोग है। दर्शन के चार भेद और ज्ञान के आठ भेद, कुल मिलाकर बारह भेद 4 उपयोग के हो जाते हैं। ये इस प्रकार हैं- (1) चक्षुर्दर्शन, (2) अचक्षुर्दर्शन, (3) अवधि दर्शन, (4) & केवल दर्शन, (5) मतिज्ञान, (6) मति-अज्ञान, (7) श्रुत ज्ञान, (8) श्रुत-अज्ञान, (9) अवधि ज्ञान (10) 0 विभंग ज्ञान, (11) मनःपर्यय ज्ञान, और (12) केवल ज्ञान / 'उपयोग' द्वार से मतिज्ञान का निरूपण यहां किया गया है। साकारोपयोग में नियमतः * पूर्वप्रतिप्रन्न होते ही हैं, और प्रतिपद्यमान के सद्भाव की भजना है। अनाकारोपयोग में तो प्रतिपन्न ही होते हैं, प्रतिपद्य-मान नहीं होते, क्योंकि अनाकारोपयोग में लब्धि की उत्पत्ति का निषेध है। (r)(r)(r) ca(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 121