________________ 222333333333333333333 cace ce ca cace ce श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) POOOOOOD नहीं)। केवलदर्शनी तो उभय-रहित हैं (अर्थात् न तो वे पूर्वप्रतिपन्न हैं और न ही प्रतिपद्यमान)। 4 (11) अब संयम द्वार का निरूपण किया जा रहा है। संयत जीव पूर्वप्रतिपन्न होता है, . & प्रतिपद्यमान नहीं होता है। (12) उपयोग द्वार का निरूपण इस प्रकार है- वह (उपयोग) दो , प्रकार का होता है- साकार और अनाकार। इनमें साकार उपयोग वाले नियम से / पूर्वप्रतिपन्नक होते हैं, प्रतिपद्यमान का सद्भाव विवक्षित काल के अनुरूप विकल्प से , ca कथनीय है। अनाकार उपयोग वाले तो पूर्वप्रतिपन्न ही होते हैं, प्रतिपद्यमान नहीं होते। " विशेषार्थ . सामान्य-विशेषात्मक वस्तु-स्वरूप में से वस्तु के सामान्य अंश को देखने वाले, जानने वाले / चेतना, व्यापार को 'दर्शन' कहा जाता है। अथवा सामान्य की मुख्यता पूर्वक, विशेष को गौण करके, पदार्थ-ज्ञान को 'दर्शन' कहा जाता है। दर्शन अनाकार माना जाता है, क्योंकि पदार्थों में यद्यपि सामान्य, विशेष दोनों ही धर्म रहते हैं, किन्तु दर्शन द्वारा मात्र सामान्य धर्म की अपेक्षा से, & स्वपरसत्ता का अभेद रूप निर्विकल्प अवभासन होता है। दर्शन मार्गणा के चार भेद होते हैं- (1) चक्षुर्दर्शन, (2) अचक्षुर्दर्शन, (3) अवधिदर्शन, (4) C केवल दर्शन / मनःपर्याय का दर्शन नहीं माना गया, क्योंकि मनःपर्यय ज्ञान अवधिज्ञान की तरह . स्वमुख से विषयों को नहीं जानता है, किन्तु परकीय मन-प्रणाली से जानता है। अतः जिस प्रकार है मन अतीत. अनागत अर्थों का विचार-चिन्तन तो करता है, किन्तु देखता नहीं है, उसी प्रकार , & मनःपर्यायज्ञानी भी भूत, भविष्यत् को जानता तो है, पर देखता नहीं है। वह वर्तमान को भी मन के विषय रूप विशेषाधिकार से जानता है। अतः सामान्यावलोकनपूर्वक प्रवृत्ति न होने से मनःपर्याय दर्शन नहीं माना जाता है। (कुछ आचार्य मनःपर्याय को दर्शन भी मानते हैं।) चक्षु इन्द्रिय द्वारा पदार्थ के सामान्य अंश का बोध 'चक्षुर्दर्शन' है। चक्षु को छोड़ कर अन्य : ce इन्द्रियों से पदार्थ के सामान्य अंश का बोध 'अचक्षुर्दर्शन' है।अवधि दर्शनावरण कर्म के क्षयोपशम से " a इन्द्रियों की सहायता के विना 'रूपी' द्रव्य का जो सामान्य बोध होता है, वह 'अवधिदर्शन' है।सम्पूर्ण . द्रव्य-पर्यायों को सामान्य रूप से विषय करने वाला बोध केवल-दर्शन है, जो घाती कर्मों के क्षय के : अनन्तर ही होता है। _ 'दर्शन' मार्गणा से आभिनिबोधिक ज्ञान का निरूपण इस प्रकार है-चक्षुर्दर्शन, अचक्षुर्दर्शन, और अवधि दर्शन -इन तीन दर्शनों में दर्शन-लब्धि की अपेक्षा से नियमतः वहां पूर्वप्रतिपन्न होते हैं, / / 'प्रतिपद्यमान' का सद्भाव भजना (विकल्प) से कथनीय है।दर्शनोपयोग की दृष्टि से तो पूर्वपतिपन्न ही | 22333333 120 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)