________________ aca cacaca cace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000000 333333333333333333333333333333333333333333333 आकाश-प्रदेश में पदार्थ अवगाढ़ (अवगाहना रखने वाला) होता है, वह 'क्षेत्र' है और उस अवगाहना से अतिरिक्त जो पार्श्ववर्ती (शरीर-प्रदेशों से स्पष्ट) अतिरिक्त क्षेत्र होता है, वह स्पर्शन है (यत्र अवगाढः, तत् क्षेत्रमुच्यते, यत्तु अवगाहनातः, बहिरपि अतिरिक्त क्षेत्रं स्पृशति, सा स्पर्शना अभिधीयते, विशेषा. . भा. 432-33, व वृत्ति आदि)। उदाहरणार्थ- एक परमाणु का क्षेत्र है- आकाश का एक प्रदेश, और 3 & स्पर्शना है- सप्तप्रदेश, (क्षेत्र-एक प्रदेश के अतिरिक्त, चारों दिशाओं, ऊपर व नीचे का आकाश प्रदेश)। " अतः विवक्षित धर्म वाले जीवादि पदार्थों के (वर्तमान) निवास स्थान का निरूपण क्षेत्र अनुयोग द्वार है, उसके क्षेत्र-स्पर्श का समुच्चय रूप से निर्देश करना स्पर्शन अनुयोग द्वार है। & (हरिभद्रीय वृत्तिः) कालश्च वक्तव्यः, स्थित्यादिकालः।अन्तरं च वक्तव्यं प्रतिपत्त्यादाविति।भागो वक्तव्यः, - मतिज्ञानिनःशेषज्ञानिनां कतिभागे वर्तन्त इति।तथा भावो वक्तव्यः, कस्मिन् भावे मतिज्ञानिन . इति। अल्पबहुत्वं च वक्तव्यम् / आह- भागद्वारादेवायमर्थोऽवगतः, ततश्चालमनेनेति, न, अभिप्रायापरिज्ञानात् / इह मतिज्ञानिनामेव पूर्वप्रतिपन्नप्रतिपद्यमानकापेक्षया अल्पबहुत्वं वक्तव्यमिति समुदायार्थः। (वृत्ति-हिन्दी-) 'काल' अर्थात् स्थिति आदि की भी प्ररूपणा करनी चाहिए। अन्तर : अर्थात् प्रतिपत्ति आदि से सम्बन्धित ‘अन्तर' (विरह-काल) की भी प्ररूपणा करनी चाहिए। 'भाग' की, जैसे मतिज्ञानी शेष ज्ञानियों के कितने भाग (प्रमाण) में हैं- इसकी प्ररूपणा, करनी चाहिए। 'भाव' की भी प्ररूपणा करनी चाहिए, जैसे- किस-किस भाव में मतिज्ञानी , : हैं। ‘अल्पबहुत्व' की प्ररूपणा भी करनी चाहिए। (शंका-) 'भाग' द्वार के द्वारा ही इस >> (अल्पबहुत्व) अर्थ का ज्ञान हो जाता है, इसलिए 'भाग' द्वार का कथन अनपेक्षित है। " (उत्तर-) ऐसी बात नहीं है, क्योंकि हमारे अभिप्राय को आपने नहीं समझा है। यहां , (अल्पबहुत्व द्वार में) मतिज्ञानियों का ही पूर्वप्रतिपन्न और प्रतिपद्यमान -इन (दो भेदों) की / अपेक्षा रखकर अल्पबहुत्व का निरूपण करना चाहिए। इस प्रकार गाथा का समुदित अर्थ है पूरा हुआ। विशेषार्थ_ 'काल' द्वार के द्वारा वस्तु या पदार्थ की जघन्य व उत्कृष्ट स्थिति-समय का निरूपण होता है है। 'अन्तर' से तात्पर्य है- विरहकाल या मध्य काल जिसमें विवक्षित गुण के गुणान्तर रूप से - 106 @9888088@@ce890@ @nen@ce@00