________________ acaceaaaaaaa श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 9009000 322232222322232223222322233333333333333322333 (संस्कृतच्छाया:-सत्पदग्ररूपणता द्रव्यप्रमाणंच क्षेत्रस्पर्शनेच कालश्च अन्तरंभाग-भाव-अल्पबह ce (वं) वैव ।गति-इन्द्रिययोश्च काये योगे वेदे कषाय-लेश्ययोः। सम्यक्त्वज्ञानदर्शनसंयम-उपयोग-आहारेषु। 2 a भाषक-परीत्त-पर्याप्त-सूक्ष्म-संज्ञिषु च भवचरमयोश्च ।आभिनिबोधिकज्ञानं माय॑ते एषु स्थानेषु // ] (वृत्ति-हिन्दी-) तत्त्व (स्वरूप), भेद, पर्याय -इन दृष्टियों से मतिज्ञान के स्वरूप का " & कथन करने के बाद, अब नौ अनुयोग-द्वारों के माध्यम से पुनः उसके स्वरूप का निरूपण . करने के लिए नियुक्तिकार (आगे की गाथाएं) कह रहे हैं (13-15) (नियुक्ति-अर्थ-) सत्पदप्ररुपणता, द्रव्यप्रमाण, क्षेत्र, स्पर्शना, काल, अन्तर, भाग, भाव, अल्पबहुत्व, (-इन नौ अनुयोगद्वारों के माध्यम से, तथा) गति, इन्द्रिय, काय, योग, , वेद, कषाय, लेश्या, सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, संयम, उपयोग, आहार, भाषक, परीत्त, पर्याप्त, . र सूक्ष्म, संज्ञी, भव, चरम -इन स्थानों में आभिनिबोधिक ज्ञान की मार्गणा की जाती है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) सच तत्पदं च सत्पदम्, तस्य प्ररूपणं सत्पदप्ररूपणम्, तस्य भावः सत्पदप्ररूपणता, गत्यादिभिरिराभिनिबोधिकस्य कर्त्तव्येति।अथवा सद्विषयं पदं सत्पदम्, शेषं पूर्ववत् आह-किमसत्पदस्यापि प्ररूपणा क्रियते? येनेदमुच्यते 'सत्पदप्ररूपणेति'।क्रियत , ca इत्याह खरविषाणादेरसत्पदस्यापीति, तस्मात् सद्ग्रहणमिति।अथवा सन्ति च तानि पदानि " a च सत्पदानि गत्यादीनि, तैः प्ररूपणं सत्पदप्ररूपणं मतेरिति / तथा 'द्रव्यप्रमाणम्' इति , a जीवद्रव्यप्रमाणं वक्तव्यम् / एतदुक्तं भवति- एकस्मिन् समये कियन्तो मतिज्ञानं प्रतिपद्यन्त . & इति, सर्वे वा कियन्त इति।कः समुच्चये। क्षेत्रम्' इति क्षेत्रं वक्तव्यम्, कियति क्षेत्रे मतिज्ञानं , संभवति। स्पर्शना च' वक्तव्या, कियत् क्षेत्रं मतिज्ञानिनः स्पृशन्ति।आह-क्षेत्रस्य स्पर्शनायाश्च कः प्रतिविशेषः?, उच्यते, यत्रावगाहस्तत् क्षेत्रम्, स्पर्शना तु तद्बाह्यतोऽपि भवति, अयं विशेष 4 इति।चशब्दः पूर्ववत्। c (वृत्ति-हिन्दी-) सत्पदप्ररूपणा का अर्थ इस प्रकार है- सत् जो पद (वाचक शब्द), . उसकी प्ररूपणा का होना (भाव)। (प्रस्तुत प्रकरण में नियुक्तिकार का अभिप्राय है-) गति , आदि द्वारों से 'आभिनिबोधिक ज्ञान' -इस सत्पद की प्ररूपणा करनी चाहिए। अथवा " 'सत्पदप्ररूपणा' का अर्थ है- सद् विषय वाले (सद्भूत विषय/अर्थ के वाचक) पद की (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 104