________________ 233333333333 caca caca cacaca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0090090900(हरिभद्रीय वृत्तिः) _ 'तत्त्व-भेद-पर्यायैर्व्याख्या' इति न्यायात् तत्त्वतो भेदतश्च मतिज्ञानस्वरूपमभिधाय & इदानीं नानादेशजविनेयगणसुखप्रतिपत्तये तत्पर्यायशब्दान् अभिधित्सुराह (नियुक्तिः) ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसणा। सण्णा सई मई पण्णा, सलं आभिणिबोहियं // 12 // [संस्कृतच्छायाः- ईहा अपोहो विमर्शो मार्गणा च गवेषणा। संज्ञा स्मृतिः मतिः प्रज्ञा, सर्वमाभिनिबोधिकम्॥] ___ (वृत्ति-हिन्दी-) स्वरूप, भेद व पर्याय -इनके निरूपण द्वारा व्याख्या की जाती है - इस नियम (न्याय) के अनुसार मतिज्ञान का तात्त्विक स्वरूप और उसके भेद का कथन / कर दिया गया, अब नाना देशों से सम्बद्ध शिष्य गणों को सुखपूर्वक ज्ञान कराने के उद्देश्य से उस (मति) के पर्याय वाचक शब्दों का कथन (आगे की गाथा में) किया जा रहा है (12) (नियुक्ति-अर्थ-) ईहा, अपोह, विमर्श, मार्गणा, गवेषणा, संज्ञा, स्मृति, मति, प्रज्ञा & -ये सब आभिनिबोधिक ज्ञान (के पर्याय) हैं। (हरिभद्रीय वृत्तिः) __ (व्याख्या-) 'ईह चेष्टायाम्', ईहजमीहा, सतामर्थानाम अन्वयिनां व्यतिरेकिणां च " पर्यालोचना इतियावत् ।अपोहनम्, अपोहः निश्चय इत्यर्थः। विमर्शनं विमर्शः ईहाया उत्तरः, " a प्रायः शिरःकण्डूयनादयः पुरुषधर्मा घटन्ते इति संप्रत्ययो विमर्शः।तथा अन्वयधर्मान्वेषणा & मार्गणा। चशब्दः समुच्चयार्थः। व्यतिरेकधर्मालोचना गवेषणा। तथा संज्ञानं संज्ञा, व्यञ्जनावग्रहोत्तरकालभावी मतिविशेष इत्यर्थः।स्मरणं स्मृतिः, पूर्वानुभूतार्यालम्बनः प्रत्ययः। / मननं मतिः-कथञ्चिदर्थपरिछित्तावपि सूक्ष्मधर्मालोचनरूपा बुद्धिरिति।तथा प्रज्ञानं प्रज्ञा विशिष्टक्षयोपशमजन्या प्रभूतवस्तुगतयथावस्थितधर्मालोचनरूपा मतिरित्यर्थः। सर्वमिदं ca 'आभिनिबोधिकं' मतिज्ञानमित्यर्थः। एवं किश्चिद्भेदाढ़ेदः प्रदर्शितः। तत्त्वतस्तु मतिवाचकाः " सर्व एवैते पर्यायशब्दाः, इति गाथार्थः॥१२॥ (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) 'ईह चेष्टायाम्' (अर्थात् चेष्टा अर्थवाली 'ईह' धातु) से - 10280@@@@cr(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 3333333333333333