________________ acacecacaacance 2200020009 223322233333333333333333333333333333333333333 नियुक्ति-गाथा-10 (वृत्ति-हिन्दी-) अथवा अर्थ (गाथा के व्याख्यान) से जोड़कर (भी) (आगे की गाथा & का) प्रतिपादन (संदर्भ-निर्देश आदि) किया जा रहा है। जिज्ञासु का कथन है कि पूर्व (गाथा . सं. 5 के व्याख्यान में श्रोत्रेन्द्रिय के विषय की सीमा बताते हुए कहा गया है कि) बारह 1 योजन से आगे के शब्द को श्रोता नहीं सुन पाता, क्योंकि वहां भाषा-सम्बन्धी पुद्गल-द्रव्यों a का गति-परिणाम मंद पड़ जाता है। वहां यह प्रश्न उठता है कि बारह योजन के आगे से भी a (शब्द-पुद्गल) द्रव्यों का आना सम्भव है क्या? (इसी तरह यह भी प्रश्न है कि) जैसे (श्रोत्र) a इन्द्रिय-विषय की सीमा (बारह योजन) के अन्दर, निरन्तर से (पूर्णतया, समग्रतया) शब्द पुद्गलों द्वारा अन्य द्रव्यों को वासित करने की जितने सामर्थ्य बताई गई है, क्या वह सामर्थ्य अपनी विषय-सीमा से बाहर भी है या नहीं? यदि यह कहें कि यह सामर्थ्य है . क्योंकि किन्हीं के मत में भाषा में समस्त लोक में व्याप्त होने की सामर्थ्य है, तो (एक और जिज्ञासा उठती है, वह इस प्रकार आगे की गाथा के रूप में है-) (10) (नियुक्ति-अर्थ-) कितने समयों में भाषा-द्रव्यों द्वारा यह लोक निरन्तर (पूर्णतया : समग्ररूप से) स्पृष्ट होता है? और भाषा (द्रव्यों) का कितना भाग और लोक के कितने भाग में स्पृष्ट होता है? 4 (हरिभद्रीय वृत्तिः) a (व्याख्या-) 'कतिभिः समयैः' 'लोकः' लोक्यत इति लोकः चतुर्दशरज्ज्वात्मकः क्षेत्रलोकः परिगृह्यते,भाषया निरन्तरमेव भवति स्पृष्टः व्याप्तः पूर्ण इत्यनन्तरम्, लोकस्य च कतिभागे कतिभागो भवति भाषायाः?,१०॥ a (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) जो अवलोकित होता है, वह 'लोक' है। यहां 'लोक' पद से चौदह राजू प्रमाण 'क्षेत्र लोक' अर्थ गृहीत है। वह क्षेत्रलोक भाषा-द्रव्यों से निरन्तर (पूर्णतया) स्पृष्ट होता है तो कितने समयों में? स्पृष्ट, व्याप्त, पूर्ण -ये एकार्थक हैं। (इसी , ce प्रकार) लोक के कितने भाग में भाषा द्रव्य का कितना भाग स्पृष्ट, व्याप्त, पूर्ण होता " ce है? ||10 // 80@RO0BRORROR@@@@@ 93