________________ Rececacance श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 900900900 - -333333333333333333333333333333333333333333333 (हरिभद्रीय वृत्तिः) आह- 'औदारिकादिः गृह्णाति मुञ्चति च भाषाम्' इत्युक्तम् / सा हि मुक्ता उत्कृष्टतः . & कियत्क्षेत्रं व्याप्नोतीति? उच्यते, समस्तमेव लोकमिति आह-यद्येवं 'कइo'त्तिगाहा।अयं & सूत्रतोऽभिसंबन्धः। (वृत्ति-हिन्दी-) [वृत्तिकार आगे वाली गाथा को पूर्वसन्दर्भ से जोड़ रहे हैं। वे अग्रिम गाथा 1 को दो प्रकार के संदर्भो से जोड़ कर देख रहे हैं। पूर्वगाथा में ही कुछ जिज्ञासा पैदा होती है, वही " * जिज्ञासा आगे की गाथा में है। यह एक संदर्भ हुआ। दूसरा संदर्भ इस प्रकार है। पीछे की गाथा के " ce अर्थ या व्याख्यान में इन्द्रिय-विषयों की, विशेषतः श्रोत्र इन्द्रिय की सीमा बताई गई थी, उस सम्बन्ध स में भी कुछ जिज्ञासा उठती है, वही आगे की गाथा में है।] जिज्ञासु का कहना है- 'औदारिक आदि (शरीरों के धारक) भाषा का ग्रहण व ce निसर्जन करता है'- ऐसा पहले (पूर्व गाथा में) कहा गया है। (तो कृपया यह बताएं कि) वह , मुक्त (निसर्जित) भाषा उत्कृष्टतः कितने क्षेत्र को व्याप्त करती है? उत्तर है- समस्त लोक & को। तब हमारी जिज्ञासा आगे की गाथा 'कइहिं समएहि' के रूप में है। इस प्रकार आगे ca की गाथा का सूत्र (मूल गाथा) से सम्बन्ध समझना चाहिए। (हरिभद्रीय वृत्तिः) अथवाऽर्थतः प्रतिपाद्यते।आह- द्वादशभ्यो योजनेभ्यः परतो न शृणोति शब्दम्, मन्दपरिणामत्वात्तद्रव्याणामित्युक्तम्, तत्र किं परतोऽपि द्रव्याणामागतिरस्ति?, यथा च विषयाभ्यन्तरे नैरन्तर्येण तद्वासनासामर्थ्यम्, एवं बहिरप्यस्ति उत बेति? उच्यते, अस्ति, CM केषाञ्चित् कृत्स्नलोकव्याप्तेः।आह-यद्येवम् नियुक्तिः) कइहि समएहि लोगो, भासाइ निरन्तरंतु होइ फुडो। लोगस्स य कइभागे, कइभागो होइ भासाएmon [संस्कृतच्छायाः-कतिभिः समयैः लोकः, भाषया निरन्तरं तु भवति स्पृष्टः।लोकस्य च कतिभागे कतिभागो भवति भाषायाः।] -333333333333333338888888888888888888888888883 92 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)ce@@@@@ -