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________________ 222222222222222222222222222222233333333333333 - -cace cace cace ca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 09009090902 (1) जनपदसत्या-विभिन्न जनपदों (प्रान्तों या प्रदेशों) में जिस शब्द का जो अर्थ इष्ट है, उस ca इष्ट अर्थ का बोध कराने वाली होने के कारण व्यवहार का हेतु होने से जो सत्य मानी जाती है। जैसे , कोंकण आदि प्रदेशों में पय को 'पिच्चम्' कहते हैं। (2) सम्मतसत्या-जो समस्सलोक में सम्मत होने .. ce के कारण सत्यरूप में प्रसिद्ध है।जैसे- शैवाल, कुमुद (चन्द्रविकासी कमल) और कमल (सूर्यविकासी ca कमल) ये सब पंकज हैं- कीचड़ में ही उत्पन्न होते हैं, किन्तु 'पंकज' शब्द से जनसाधारण 'कमल' . & अर्थ ही समझते हैं। शैवाल आदि को कोई पंकज नहीं कहता। अतएव कमल को ‘पंकज' कहना है सम्मतसत्य भाषा है। (3) स्थापनासत्या-तथाविध (विशेष प्रकार के) अंकादि के विन्यास तथा मुद्रा : ca आदि के ऊपर रचना (छाप) देखकर जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है, वह स्थापनासत्या भाषा ce है। जैसे '1' अङ्क के आगे दो बिन्दु देखकर कहना- यह सौ (100) है, तीन बिन्दु देखकर कहना- यह एक हजार (1000) है। अथवा मिट्टी, चांदी, सोना आदि पर अमुक मुद्रा (मुहरछाप) अंकित देखकर माष, कार्षापण, मुहर (गिन्नी), रुपया आदि कहना। (4) नामसत्या- केवल नाम के कारण ही जो / 4 भाषा सत्य मानी जाती है, वह नामसत्या कहलाती है। जैसे- कोई व्यक्ति अपने कुल की वृद्धि नहीं ? ca करता, फिर भी उसका नाम 'कुलवर्द्धन' कहा जाता है। (5) रूपसत्या-जो भाषा केवल अमुक रुप . a (वेशभूषा आदि) से ही सत्य है। जैसे- किसी व्यक्ति ने दम्भपूर्वक साधु का रूप (स्वांग) बना लिया हो, उसे 'साधु' कहना रूपसत्या भाषा है। (6) प्रतीत्यसत्या-जो किसी अन्य वस्तु की अपेक्षा से 2 ca सत्य हो। जैसे- अनामिका अंगुली को 'कनिष्ठा' (सबसे छोटी) अंगुली की अपेक्षा से दीर्घ कहना, .. 4 और मध्यमा की अपेक्षा से ह्रस्व कहना प्रतीत्यसत्या भाषा है। (7) व्यवहारसत्या- व्यवहार से- " लोकविवक्षा से जो सत्य हो वह व्यवहारसत्य भाषा है। जैसे- किसी ने कहा- 'पहाड़ जल रहा है'। यहां पहाड़ के साथ घास की अभेदविवक्षा करके ऐसा कहा गया है। अतः लोकव्यवहार की अपेक्षा से .. 4 ऐसा बोलने वाले साधु की भाषा भी व्यवहारसत्या होती है। (8) भावसत्या--भाव से अर्थात् -वर्ण ce आदि (की उत्कटता) को लेकर जो भाषा बोली जाती हो, वह भावसत्या भाषा है। अर्थात्- जो भाव " & जिस पदार्थ में अधिकता से पाया जाता है, उसी के आधार पर भाषा का प्रयोग करना भावसत्या , & भाषा है।जैसे- बलाका (बगुलों की पंक्ति) में पांचों वर्ण होने पर भी उसे श्वेत कहना / (7) योगसत्या योग का अर्थ है- सम्बन्ध, संयोग; उसके कारण जो भाषा सत्य मानी जाए। जैसे- छत्र के योग से , ca किसी को छत्री कहना, भले ही शब्दप्रयोगकाल में उसके पास छत्र न हो। इसी प्रकार किसी को दण्ड " ca के योग से दण्डी कहना। (10) औपम्यसत्या- उपमा से जो भाषा सत्य मानी जाए। जैसे- गौ के 2 समान 'गवय' (पशु विशेष) होता है। इस प्रकार की उपमा पर आश्रित भाषा को औपम्यसत्या कहा जाता है। &&&&&&aaaaaaaaaaaaaaaaaaa हामी 88 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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