________________ 333333333333333382333333333333333333333333333 / -Racecacace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 20000 90 / (हरिभद्रीय वृत्तिः) __ आह-ग्रहणनिसर्गप्रयत्नौ आत्मनः परस्परविरोधिनौ एकस्मिन्समये कथं , स्यातामिति? अत्रोच्यते, नायं दोषः, एकसमये कर्मादाननिसर्गक्रियावत् तथोत्पादव्ययक्रियावत् / तथाऽङ्गुल्याकाशदेशसंयोगविभागक्रियावच्च क्रियाद्वयस्वभावोपपत्तेरिति गाथार्थः // 7 // (वृत्ति-हिन्दी-) (शंकाकार द्वारा पुनः) (शंका-) ग्रहण व निसर्ग -ये दोनों स्वरूप से परस्पर-विरोधी हैं, अतः उनका एक समय में होना कैसे सम्भव हो सकता है? यहां उत्तर 8 दिया जा रहा है- उक्त दोष नहीं है, क्योंकि जिस प्रकार एक समय में कर्म-सम्बन्धी आदान एवं निसर्ग (अर्थात् कर्म-बन्ध व विपाक वेदनीय निर्जरा) -ये दोनों क्रियाएं (साथ-साथ) स होती हैं, तथा (एक द्रव्य में, एक समय में ही) उत्पाद व व्यय सम्बन्धी क्रिया (परिणाम) होते " हैं, और जिस प्रकार अंगुली में एक आकाश-प्रदेश के साथ संयोग व विभाग -ये दोनों ही क्रियाएं (एक समय में) होती हैं, उसी प्रकार (एक ही समय में) दो क्रियाओं की स्वाभाविकता - संगत होती है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ ||7 || (हरिभद्रीय वृत्तिः) यदुक्तं- 'गृह्णाति कायिकेन' इत्यादि, तत्र कायिको योगः पञ्चप्रकारः, औदारिकवैक्रियाहारकतैजसकार्मणभेदभिन्नत्वात्तस्य, ततश्च किं पञ्चप्रकारेणापि कायिकेन गृह्णाति आहोस्विदन्यथा-इत्याशङ्कासंभवे सति तदपनोदायेदमाह (नियुक्तिः) तिविहंमि सरीरंमि, जीवपएसा हवन्ति जीवस्स। जेहि उ गिण्हइ गहणं, तो भासइ भासओ भासं // 8 // [संस्कृतच्छायाः-त्रिविधे शरीरे जीवप्रदेशा भवन्ति जीवस्यायैस्तु गृह्णाति ग्रहणं ततो भाषते भाषको भाषाम् // ] (वृत्ति-हिन्दी-) 'कायिक योग से ग्रहण करता है' इत्यादि जो कथन किया गया है, & उसमें कायिक योग पांच प्रकार का होता है, क्योंकि काय के औदारिक, वैक्रिय, आहारक, . तैजस व कार्मण -ये (पांच) भेद होते हैं। यहां यह आशंका हो सकती है कि (वक्ता) क्या है * पांचों प्रकार के शरीरों से (भाषा द्रव्य का) ग्रहण करता है या किसी एक से (या अन्य कुछ " से)। इस आशंका को दूर करने के लिए आगे गाथा कह रहे हैं (r)(r)cRBSCR@@@@c809009088009 - - 80