________________ -RRRRRRRRR नियक्ति-गाथा- 7 009 DDDDDDDU अनुरूप दूसरी ध्वनितरंगों को उत्पन्न करता है और वे दूसरी ध्वनितरंगें जब श्रोता तक पहुंचती हैं तब ca वह शब्द वासित होता है अर्थात् उन उच्चरित शब्दों से प्रकम्पित या शब्दायमान होकर जो अन्य शब्द- 2 ध्वनि निकलती है, वह वासित होती है, जैसे ध्वनिविस्तारक यन्त्र से निकले शब्द / जिस ध्वनि में / ca उच्चारित और वासित दोनों प्रकार की शब्द-ध्वनियां रहती हैं, वह उच्चरित-वासित (मिश्र) शब्दध्वनि " ल होती है। इसी प्रकार वक्ता की दृष्टि से भी ध्वनि या द्रव्यभाषा तीन प्रकार की मानी गयी है- ग्रहण, >> निःसरण और पराघात / वचनयोग वाली आत्मा अर्थात् वक्ता द्वारा गृहीत भाषावर्गणा के पुद्गलग्रहण, उसके द्वारा उच्चरित भाषावर्गणा के पुद्गल- निःसरण और उच्चरित भाषावर्गणा के पुद्गल द्वारा संस्कारित (वासित) अन्य भाषावर्गणा के पुद्गल- पराघात / शब्दात्मक भाषा को यहां पौगलिक बताया गया है। अर्थात् 'शब्द' पुद्गल का ही पर्याय है। इस कथन से नैयायिक-वैशिषिकों द्वारा शब्द को आकाश का गुण जो माना गया है, उसका खण्डन " हो जाता है। चूंकि शब्द की उत्पत्ति जीव के प्रयत्नों से होती है, अतः भाषा को जड़ व चेतन का संयुक्त , परिणाम कह सकते हैं। चूंकि शब्द पुद्गल का एक पर्याय है, अतः वह अनित्य भी है। इसमें स्पर्श गुण माना गया है। शास्त्रीय भाषा में यह चतुःस्पर्शी है जिसमें शीत-उष्ण, स्निग्ध-रूक्ष -ये चार ही ca स्पर्श होते हैं। भाषात्मक शब्द सूक्ष्म होने के साथ-साथ प्रसरणशील भी होते हैं। सूक्ष्म होने से स्पर्शन " इन्द्रिय से उनका अनुभव नहीं हो पाता / सूक्ष्म होने के कारण ही किन्हीं अवरोधों से इन्हें बाधित v (अवरुद्ध) करना भी शक्य नहीं होता। जिस प्रकार गंध के परमाणु बिना किसी बाधा के बन्द दरवाजे वाले कमरे में प्रविष्ट हो जाते हैं, उसी प्रकार शब्द भी प्रविष्ट हो जाते हैं। (हरिभद्रीय वृत्तिः) केन पुनर्योगेन एषां वारद्रव्याणां ग्रहणमुत्सर्गो वा कथं वेत्येतदाशय गुरुराह (नियुक्तिः) गिण्हइय काइएणं, निस्सरइतह वाइएणजोएणं। एगन्तरं च गिण्हइ, णिसिरइ एगंतरं चेव // 7 // [संस्कृतच्छाया:-गृह्मातिच कायिकेन, निसृजति तथा वाचिकेन योगेनाएकान्तरंच गृह्णाति, निसृजति a एकान्तरमेव // ] (वृत्ति-हिन्दी-) किन्तु इन भाषा द्रव्यों का ग्रहण या उत्सर्ग किस योग से और किस , प्रकार से होता है -इस आशंका (जिज्ञासा) को दृष्टि में रख कर गुरुवर कह रहे हैं 2333333333333333333333 / 2222223823222333333333. @ @@@ @ce@n@ce@n cR@ @ @ce(r)08 75 EET