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________________ सिक CACA CRORE श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 09 20 20 20 2009 33333333333333333333333333333333333333333333B (7) (नियुक्ति-अर्थ-) भाषा-द्रव्य का काय योग के द्वारा ग्रहण होता है और वचन योग : के द्वारा निस्सरण किया जाता है। ग्रहण एकान्तर होता है और निस्सरण भी एकान्तर होता है। . (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) तत्र कायेन निवृत्तः कायिकः, तेन कायिकेन योगेन, योगो व्यापारः कर्म " क्रियेत्यनन्तरम्। सर्व एव हि वक्ता कायक्रियया शब्दद्रव्याणि गृह्णाति, चशब्दस्त्वेवकारार्थः, स चाप्यवधारणे, तस्य च व्यवहितः संबन्धः, गृह्णाति कायिकेनैद, निसृजत्युत्सृजति मुञ्चतीति : पर्यायाः, तथेत्यानन्तर्यार्थः, उक्तिर्वाक्, वाचा निर्वृत्तो वाचिकस्तेन वाचिकेन योगेन / कयं गृह्णाति , निसृजतीति वा? किमनुसमयम् उत अन्यथेत्याशङ्कासंभवे सति शिष्यानुग्रहार्थमाह4 एकान्तरमेव गृह्णाति, निसृजति एकान्तरं चैव।अयमत्र भावार्थ:- प्रतिसमयं गृह्णाति मुञ्चति & चेति, कथम्?, यथा ग्रामादन्यो ग्रामो ग्रामान्तरम्, पुरुषाद्वा पुरुषोऽनन्तरोऽपि सन्निति, " स एवमेकैकस्मात्समयाद् एकैक एव एकान्तरोऽनन्तरसमय एवेत्यर्थः / अयं गाथासमुदायार्थः। . (वृत्ति-हिन्दी-) वहां (कायिक योग शब्द में) कायिक का अर्थ है- काय से निष्पन्न / " & योग, व्यापार, कर्म या क्रिया -इनमें अर्थ-भेद नहीं है (अर्थात् ये एक ही अर्थ के वाचक हैं)। " सभी वक्ता कायिक क्रिया द्वारा शब्द (भाषा) द्रव्यों को ग्रहण करता है। यहां 'च' शब्द 'एव' , (ही) अर्थ को व्यक्त करता है और 'अवधारण' करता है, उसका व्यवहित सम्बन्ध है (अर्थात् 'ही' का सम्बन्ध 'ग्रहण करता है' के साथ नहीं, अपितु कायिक योग के साथ है)। अतः , 6 (फलित अर्थ होगा-) कायिक योग से ही (ग्रहण करता है)। 'तथा' यह पद अनन्तर 2 ('और') अर्थ को अभिव्यक्त करता है। निसर्जन करना. उत्सर्जन करना. छोडना -ये " पर्यायवाची हैं। कथन ही वाक् है, वाक् (वाणी) से जो निष्पन्न है, वह वाचिक है। (पूरा " वाक्यार्थ इस प्रकार होगा-) उस (वाचिक) योग के द्वारा (निसर्जन आदि करता है)। किस , & प्रकार ग्रहण करता है या छोड़ता है? क्या प्रत्येक समय में या अन्य रूप से? इस आशंका की सम्भावना हो सकती है, अतः शिष्य के अनुग्रह हेतु कह रहे हैं- एकान्तर (एक के बाद , एक -इस) रूप से ही ग्रहण करता है और उत्सर्जन (छोड़ना) भी एकान्तर रूप से करता है है। इसका भावार्थ यही है कि प्रतिसमय ग्रहण करता है और छोड़ता है। (एकान्तर का उक्त .. , भाव) कैसे? (उत्तर-) जैसे ग्रामान्तर का अर्थ होता है- पुरुषान्तर / इसी तरह (एकान्तर &&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&& - 76 (r)(r)R@@@mc@RSCR(r)(r)(r)(r)08
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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