________________ Rececentence 2000000000 2223823333333333333333333333333333333333333331 नियुक्ति-गाथा-5 भवन्ति- “अमुत्र मे गतं मनः” इति।अत्रोच्यते, प्राप्तिनिबन्धनाख्यहेतुविशेषणार्थनिराकृतत्वाद् ca अस्याक्षेपस्येत्यदोषः। किं च-यदि हि प्राप्तिनिबन्धनौ विषयकृतावनुग्रहोपघातौ स्याताम्, एवं तर्हि अग्निशूलजलाद्यालोकनेषु दाहभेदक्लेदादयः स्युरिति।किंच-प्राप्तविषयपरिच्छेदकत्वे: सति अक्षिअञ्जनमलशलाकादिकमपि गृह्णीयात्। (वृत्ति-हिन्दी-) पहले हमने यह कहा था कि नेत्र व मन की अप्राप्यकारिता के विषय में 'स्पृष्टं शृणोति शब्दम्' -इत्यादि गाथा में आगे कहेंगें। अब उसी का निरूपण कर, रहे हैं। हमारा अनुमान वाक्य इस प्रकार है (जिससे नेत्र की अप्राप्यकारिता का समर्थन होता है)- नेत्र योग्य देश में स्थित तथा अप्राप्त (अस्पृष्ट रहती हुई) विषय को जानने वाली है, . ca क्योंकि स्पृष्ट होने के कारण, स्पृष्ट विषय की ओर से इन्द्रिय में जो अनुग्रह (अनुकूल वेदन) और उपघात (प्रतिकूल वेदन) होते हैं, वे इस (नेत्र) में नहीं होते, मन की तरह। यहां स्पर्शन इन्द्रिय विपक्ष है। (शंका-) आपके अनुमान-वाक्य में जो हेतु प्रयुक्त है, वह असिद्ध (दोष से दूषित) व है, क्योंकि जल, घृत, वनस्पति आदि को देखते रहने पर नेत्र में अनुग्रह (अनुकूल वेदन) होता है, और सूर्य आदि को देखते रहने पर उसमें उपघात (प्रतिकूल वेदन) होता है। इसके , ca अतिरिक्त, आपका दृष्टान्त (मन) भी साध्य से रहित है (अर्थात् दृष्टान्त भी दोषग्रस्त है), . क्योंकि लोक में लोग कहते (सुने जाते) हैं- मेरा मन तो यहां गया (लगा) हुआ है (अतः : मन तो प्राप्यकारी हुआ, किन्तु साध्य है अप्राप्यकारिता, जो दृष्टान्त से विरुद्ध है)। उत्तर दे / & रहे हैं। (वह यह है कि) हमने हेतु का विशेषण दिया है- स्पृष्ट होने के कारण (प्राप्तिनिबन्धनाख्य " व हेतु), अतः उक्त दोष वहां नहीं रहता (क्योंकि जल आदि को देखने पर जो (नेत्र में) अनुग्रह 1 a होता दिखाई देता है, या सूर्य आदि को देखने पर (नेत्र में) उपघात होता दिखाई देता है, वह स्पर्श-निमित्तक (विषय के साथ स्पर्श होने के कारण) नहीं, अपितु बिना स्पर्श किये ही वे , & (अस्पृष्ट पदार्थ) अनुग्रह या उपघात के कारण होते हैं।) और यदि ऐसा मानें कि वे अस्पृष्ट : पदार्थ अनुग्रह या उपघात के कारण होते हैं तो फिर अग्नि, शूल व जल आदि को देखने पर , क्रमशः नेत्र (अग्नि से) जल जाएगी, (शूल से) छिन्न-भिन्न हो जाएगी, (जल से) गीली हो / a जाएगी (किन्तु ऐसा नहीं होता, क्योंकि अग्नि आदि से नेत्र स्पृष्ट ही नहीं होती)। इसके . अतिरिक्त, यदि नेत्र अपने विषय से स्पृष्ट होकर जानती हो तो वह अपने में लगे अंजन, मल, - @SCRenecren@R@n@Ren@necene 67 -