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________________ RRRRRRRRce 333333333333333333333333333333333333332233333 नियुक्ति गाथा-5 ගහ හ හ හ හ හ හහ සාහ කර सूर्य-को भी प्रत्यक्ष देखते हैं। ऐसा शास्त्रों में कहा भी गया है। आज भी हम सूर्य को लाखों योजनों ce से परे होने पर भी देख सकते हैं। अंगुल का माप तीन प्रकार का है- (1) आत्मांगुल (2) उत्सेधांगुल, और प्रमाणांगुल। " M इनका क्रमशः निरूपण इस प्रकार है आत्मांगुल- अपने अंगुल के द्वारा नापने पर अपने शरीर की ऊंचाई 105 अंगुल प्रमाण है होती है। वह अंगुल उसका आत्मांगुल कहलाता है। इस अंगुल का प्रमाण सर्वदा एकसा नहीं रहता, है, क्योंकि काल भेद से मनुष्यों के शरीर की ऊंचाई घटती-बढ़ती रहती है। उत्सेधांगुल- परमाणु दो प्रकार का होता है- एक निश्चय परमाणु और दूसरा व्यवहार , & परमाणु / अनन्त निश्चय परमाणुओं का एक व्यवहार परमाणु होता है। यद्यपि वह व्यवहार परमाणु वास्तव में स्कन्ध है, किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से उसे परमाणु कह दिया जाता है, क्योंकि वह इतना , सूक्ष्म होता है कि तीक्ष्ण-से-तीक्ष्ण शस्त्र के द्वारा भी इसका छेद-भेदन नहीं हो सकता है, फिर भी माप के लिए इसको मूल कारण माना गया है। जो इस प्रकार है- अनन्त व्यवहार परमाणुओं की cw एक उत्सूक्ष्ष्य-शुक्षिणका और आठ उत्भूक्ष्ण-शुक्षिणका की एक शुक्ष्ण-भूक्षिणका होती है। आठ शुक्ष्ण- 4 श्रुदिणका का एक ऊर्ध्वरेणु, आठ ऊर्ध्वरेणु का एक त्रसरेणु, आठ त्रसरेणु का एक रथरेणु, आठ रथरेणु . का देवकुरु व उत्तरकुरु क्षेत्र के मनुष्य का एक केशाग्र, उन आठ केशायों का एक हरिवर्ष व रम्यक व क्षेत्र के मनुष्य का केशाय, उन आठ केशायों का एक पूर्वापर विदेह के मनुष्य का केशान, उन आठ c. केशानों का एक भरत व ऐरावत क्षेत्र के मनुष्यों का केशान, उन आठ केशागों की एक लीख, आठ n & लीख की एक यूका (जू), आठ यूका का एक यव का मध्य भाग और आठ यवमध्य का एक . G उत्सेधांगुल होता है। छह उत्सेधांगुल का एक पाद, दो पाद की एक वितस्ति, दो वितस्ति का एक हाथ, / चार हाथ का एक धनुष, दो हजार धनुष का एक गव्यूत और चार गव्यूत का एक योजन होता है। प्रमाणांगुल- प्रमाणांगुल की लम्बाई उत्सेधांगुल से 400 गुना ज्यादा होती है। उसकी व चौड़ाई उत्सेधांगुल से अढ़ाई गुना अधिक होती है। 400 को अढ़ाई से गुणा करने पर यह 1000 होता है है, अर्थात् बाहल्य की दृष्टि से उत्सेधांगुल से प्रमाणांगुल एक हजार गुना बड़ा माना गया है। " प्रमाणांगुल से द्वीप, समुद्र, लोक, आदि की लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई, गहराई व परिधि आदि को मापा जाता है। उत्सेधांगुल से नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य व देवों के शरीर की अवगाहना का मान बताया जाता है। आत्मांगुल से समकालिक कूप, तालाब, नदी, उद्यान, रथ, यान आदि मापे जाते हैं। 1 (विस्तार हेतु द्र. अनुयोग द्वार, नवम प्रकरण तथा विशेषावश्यक भाष्य, गाथा-340-344 एवं शिष्यहिता टीका)। Sece8c008RoRecen8086@ne
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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