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________________ -RRRRRRR श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000000 अनुरूप, (बद्ध व स्पृष्ट -इन दोनों शब्दों को अलग-अलग न लिख कर एक साथ) 'बद्धस्पृष्ट' ce इस रूप में रख दिया गया है। इसका तात्पर्य है- जो बद्ध है और स्पृष्ट (भी) है। (भी) है। . & [कहने का निष्कर्ष यह है कि गन्ध, रस व स्पर्श को सम्बद्ध इन्द्रियां तभी जानती हैं, जब वे ca उन (गन्ध, रस व स्पर्श) के साथ बद्ध भी हों और स्पृष्ट भी हों।] विशेषार्थ ___प्राप्तकारिता-अप्राप्तकारिता- चक्षु और मन से व्यंजनावग्रह नहीं होता क्योंकि ये दोनों ca अप्राप्यकारी हैं। इन्द्रियां दो प्रकार की हैं- प्राप्यकारी और अप्राप्यकारी। प्राप्यकारी उसे कहा जाता " है जिसका विषय-ग्रहण में पदार्थ के साथ सम्बन्ध होना अनिवार्य हो, और जिसका पदार्थ के साथ & सम्बद्ध नहीं होता उसे अप्राप्यकारी कहा जाता है। अर्थ और इन्द्रिय का संयोग व्यंजनावग्रह के लिए अपेक्षित है और संयोग के लिए प्राप्यकारिता अनिवार्य है। चक्षु और मन-ये दोनों अप्राप्यकारी हैं, अतः इनके साथ पदार्थ का संयोग नहीं होता। बिना संयोग के व्यंजनावग्रह सम्भव नहीं है। प्रश्न हो सकता है कि मन को तो अप्राप्यकारी मान सकते हैं, पर नेत्र अप्राप्यकारी किस प्रकार है? समाधान है- नेत्र स्पृष्ट अर्थ का ग्रहण नहीं करती है, इसलिए वह अप्राप्यकारी है। त्वगिन्द्रिय के समान वह ce स्पृष्ट अर्थ का ग्रहण करती होती तो वह भी प्राप्यकारी हो सकती थी, किन्तु वह स्पृष्ट होकर पदार्थ का " ca ग्रहण नहीं करती, अतः नेत्र अप्राप्यकारी है। स्पर्शन, रसन और घ्राण -ये तीन इन्द्रियां भोगी हैं तथा नेत्र और श्रोत्र -ये दो कामी हैं। ca कामी इन्द्रियों के द्वारा सिर्फ विषय जाना जाता है, उसकी अनुभूति नहीं होती। भोगी इन्द्रियों के द्वारा विषय का ज्ञान और अनुभूति दोनों होते हैं। इन्द्रियों के द्वारा हम बाहरी वस्तुओं को जानते हैं। जानने की प्रक्रिया सबकी एक-सी नहीं है। नेत्र की ज्ञान-शक्ति शेष इन्द्रियों से अधिक पटु है, इसलिए वह ce अस्पष्ट रूप को भी जान लेती है। स्पर्शन, रसन और घ्राण -ये तीन इन्द्रियां पटु, श्रोत्र पटुतर और नेत्र इन्द्रिय पटुतम होती , है। नेत्र इन्द्रिय की पटुता सर्वाधिक है, इसलिए वह अस्पृष्ट, अप्राप्त अथवा असंबद्ध विषय का भी c& ग्रहण कर लेती है। श्रोत्र इन्द्रिय पटुतर होती है, इसलिए वह स्पृष्ट अथवा प्राप्त मात्र विषय को ग्रहण 7 करती है। जैसे धूल शरीर को छूती है, वैसे ही शब्द कान को छूता है और उसका बोध हो जाता है। . c. शब्द के परमाणु-स्कन्ध सूक्ष्म, प्रचुर द्रव्य वाले तथा भावुक- उत्तरोत्तर शब्द के परमाणु स्कंधों को " वासित, प्रकम्पित करने वाले होते हैं। इसलिए उनका बोध स्पर्श मात्र से हो जाता है। स्पर्शन, रसन , C और घ्राण -ये तीन इन्द्रियां स्पृष्ट व बद्ध विषय का ही ग्रहण करती हैं। इसका हेतु यह है कि इनके ca विषयभूत परमाणु स्कन्ध अल्पद्रव्य वाले और अभावुक होते हैं। और चूंकि ये तीनों इन्द्रियां श्रोत्रेन्द्रिय " * के समान पटु नहीं होतीं, इसलिए इनका विषय पहले स्पृष्ट होता है, स्पर्श के अनन्तर वह बद्ध होता" है- आत्म-प्रदेशों के द्वारा गृहीत होता है। - 6089@ce@@@pc@DBr(r)(r)(r)cene - 223333333333333333333333333333333333333333333
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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